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अनुसन्धान-७१
और अनाधृष्टि भी वसुदेव और धारिणी के पुत्र थे और इस प्रकार वे भी अन्य माता से उत्पन्न श्रीकृष्ण के ही भाई थे । अन्य व्यक्तियों मे सुमुख, दुर्मुख और कूपदारक ये तीन बलदेव के पुत्र थे । इस प्रकार ये तीनों श्रीकृष्ण के भतीजे थे । इस प्रकार तीसरे वर्ग में कृष्ण के दस भाईयों
और तीन भतीजों का उल्लेख है । चतुर्थ वर्ग में जो दस अध्ययन है उनमें जालि, मयालि, उपालि, पुरुषसेन और वायुसेन ये पांच वसुदेव और धारिणी के पुत्र कहें गये है । इस प्रकार ये भी श्रीकृष्ण के भाई थे, प्रद्युम्न और शाम्ब ये दो कृष्ण के पुत्र थे । यद्यपि इनमें प्रद्युम्न की माता रुक्मिणी और शाम्ब की माता जाम्बवती थी । अनिरुद्ध कुमार को प्रद्युम्न
और वैदर्भी का पुत्र बताया गया है । इस प्रकार अनिरुद्ध कृष्ण के पौत्र है । सत्यनेमि और दृढनेमि समुद्रविजय और शिवादेवी के पुत्र कहे गये है । अत: ये अरिष्टनेमि के सहोदर और श्रीकृष्ण के चचेरे भाई कहे जा सकते है।
इस प्रकार चौथे वर्ग में कृष्ण के दो चचेरे भाई, पांच भाई, दो पुत्र और एक पौत्र का उल्लेख है। पांचवे वर्ग में १. पद्मावती २. गौरी ३. गान्धारी ४. लक्ष्मणा ५. सुसीमा ६. जाम्बवती ७. सत्यभामा और ८. रुक्मिणी - इन आठ कृष्ण की पटरानियों एवं मूलश्री एवं मूलदत्ता नामक दो पुत्रवधूओं का उल्लेख है । ये सभी रानियां द्वारिका के विनाश की भविष्यवाणी सुनकर अरिष्टनेमि के पास दीक्षित होने का निर्णय करती है और श्रीकृष्ण समारोहपूर्वक उन्हें प्रव्रज्या ग्रहण करवाते है । इनमें मूलश्री और मूलदत्ता कृष्ण और जाम्बवती के पुत्र शाम्बकुमार की पत्नियां अर्थात् श्रीकृष्ण की पुत्रवधूए थी । इस प्रकार हम देखते है कि अन्तकृत्दशा के प्रथम पांच वर्ग और उनके उनपचास अध्याय श्रीकृष्ण के परिवार से ही सम्बन्धित है । अन्तकृत्दशा में श्रीकृष्ण के जिन परिजनों का उल्लेख हुआ है उनमें से उनके नाम तो ऐसे हैं जिनका नाम हमें हिन्दु परम्परा के अन्य ग्रन्थों में मिल जाता है । किन्तु उनमें कुछ ऐसे भी है जिनका उल्लेख हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है । चाहे इन सभी नामों की ऐतिहासिकता