SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० अनुसन्धान-७१ पुत्र को वैराग्य उत्पन्न होता है । कृष्ण उसके वैराग्य की परीक्षा करते है तथा अत्यंत वैभवशाली अभिनिष्क्रमण महोत्सव का आयोजन करते है । वैसे इस अध्याय में श्रीकृष्ण की राज्यसम्पदा तथा उदारवृत्ति का परिचय तो मिलता है किन्तु उनके जीवनप्रसंगो का कोई उल्लेख नहीं है । जैन आगम साहित्य में एक अन्य ग्रन्थ प्रश्नव्याकरणसूत्र में भी कृष्ण के राज्य और परिवार का विस्तार से वर्णन किया गया है :- ज्ञाताधर्मकथा के शैलक अध्ययन में वर्णित कृष्ण के राज्य और परिवार के विवरण से प्रश्नव्याकरण के विवरण की तुलना करने पर हमें कुछ नवीन सूचनाएं प्राप्त होती है । इसमें कृष्ण की सोलह हजार रानियों का उल्लेख है । प्रश्नव्याकरण का यह विवरण ज्ञाताधर्मकथा के विवरण से इस अर्थ में विशेषता रखता है कि यहां कृष्ण के जीवन के संदर्भ में हिन्दु परम्परा में उल्लेखित अनेक घटनाओं का उल्लेख हुआ है । इसमें कृष्ण के द्वारा मुष्टिक और चाणूर नामक मल्लों का, रिष्ट नामक दुष्ट बैल का, कालिया नामक नाग का, यमुनार्जुन नामक राक्षस का, महाशकुनि और पूतना नामक दो विद्याधरियों का तथा कंस और जरासन्ध नामक दो शक्तिसम्पन्न राजाओं का संहार करने का उल्लेख मिलता है । प्रश्नव्याकरण में कृष्ण का यह जीवनवृत्त विस्तृत रूप में उल्लेखित है । (प्रश्नव्याकरण पृष्ठ ३६६ से ३६८) कृष्ण के जीवनप्रसंगो के संदर्भ में अधिक विस्तृत चर्चा करनेवाले जैन आगम ग्रन्थों में अन्तकृत्दशा महत्वपूर्ण है । यहां स्मरणीय है कि वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृत्दशा की विषयवस्तु पर्याप्त रूप से परिवर्तित हो गई है, क्यों कि अन्तकृत्दशा की विषयवस्तु के सन्दर्भ में स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, नन्दीसूत्र, तत्वार्थराजवार्तिक, समवायाङ्गवृत्ति, नन्दीचूर्णि एवं अङ्गप्रज्ञप्ति में जो उल्लेख है, उनमें परस्पर भिन्नता है और अन्तकृत्दशा की वर्तमान विषयवस्तु से पूर्णत: मेल नहीं खाते हैं । अन्तकृत्दशा में कृष्ण और उनके परिजनों के उल्लेखयुक्त जो विवरण उपलब्ध हुआ है वह ईसा की छठी शताब्दी से अधिक परवर्ती नहीं माना जा सकता है । क्योंकि नन्दीसूत्र में अन्तकृत्दशा के आठ वर्गो के और नन्दीचूणि में प्रथम वर्ग
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy