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________________ १६८ अनुसन्धान-७१ से पाण्डवों के साथ पद्मनाभ की राजधानी अपरकङ्का पहुंचते है । इसी प्रसंग में पद्मनाभ के पास दूत का भेजना, पद्मनाभ से युद्ध में पाण्डवों का पराजित होना, अन्त में श्रीकृष्ण द्वारा पद्मनाभ को पराजित करना और द्रौपदी को वापस प्राप्त करने के उल्लेख है । इस कथाप्रसंग में श्रीकृष्ण के पुरुषार्थ और पराक्रम के चर्चा के साथ-साथ यह भी उल्लेख हुआ है कि द्रौपदी सहित पांचो पाण्डव और श्रीकृष्ण जब वापस आते है तब पाण्डव नौका द्वारा पहले गङ्गा पार कर लेते है, किन्तु गङ्गा पार करने के लिए श्रीकृष्ण को वापस नौका नहीं भेजते है । फलत: वे गङ्गा नदी को तैरकर पार करते है और पाण्डवों पर कुपित हो उन्हें देशनिर्वासन की आज्ञा देते है । पाण्डव कुन्ती के पास पहुंचते है और सारी घटना उसे सुनाते है । कुन्ती पुनः कृष्ण के पास पहुंचती है और श्रीकृष्ण से अपने पुत्रों की देशनिर्वासन की आज्ञा को वापस लेने की प्रार्थना करती है । श्रीकृष्ण कहते है कि वासुदेव के वचन मिथ्या नहीं होते हैं, अतः देशनिर्वासन की आज्ञा वापस लेना सम्भव नहीं है । अन्त में वे पाण्डवों को दक्षिण दिशा में जाकर समुद्र के किनारे पाण्डु-मथुरा नामक नगर बसाकर वहां रहने का आदेश देते है । यद्यपि यहां कुछ भौगोलिक असंगतियों परिलक्षित होती है, प्रथम तो यह कि दक्षिण-मदुरा (मदुराई) दक्षिण में होकर भी समुद्र के किनारे नहीं है, दूसरे पूर्वीय समुद्र तट से लौटते हुए मार्ग में गङ्गा का पडना आवश्यक नहीं है। प्रस्तुत कथाप्रसंग श्रीकृष्ण का पाण्डवों के मित्र, एक शूरवीर योद्धा तथा दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र में स्वामी के रूप में चित्रण करता है । विशेषता यह है कि यहां पर श्रीकृष्ण और पाण्डवों के चरित्र के प्रसंग में महाभारत के युद्ध का कोई उल्लेख नहीं है । उसके स्थान पर अपरकङ्का में पद्मनाभ से हुए युद्ध का चित्रण है, समानता मात्र यह है कि दोनों ही युद्धों का कारण द्रौपदी है । जहां तक मेरी जानकारी है हिन्दु परम्परा में कृष्ण चरित्रं के चर्चा प्रसंग में कहीं भी अपरकङ्का के पद्मनाभ के साथ उनके युद्ध का कोई उल्लेख नहीं है । मात्र यही नहीं, श्रीकृष्ण का पाण्डवों पर
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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