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ओक्टोबर-२०१६
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प्रकार यहां हिन्दु परम्परा में प्रचलित द्रौपदी की कथा को अधिक सुसंगत
और तार्किक बनाने का प्रयत्न किया गया है, ताकि द्रौपदी के निर्मल चरित्र को बिना खरोंच पहुंचाये ही पांच पतियोंवाली घटना को तर्कसंगत रूप में प्रस्तुत किया जा सके । इस प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि यहां द्रौपदी और पांच पाण्डवों को जैन धर्म का अनुयायी बताया गया है । मात्र यही नहीं नारद को असंयमी परिव्राजक के रूप में चित्रित करके जैन धर्म की अनुगामिनी द्रौपदी द्वारा समुचित आदर न देने की घटना का भी उल्लेख है । इससे ऐसा लगता है कि ज्ञाताधर्मकथा के इस कथाप्रसंग की रचना के समय तक जैन संघ में धार्मिक कट्टरता का प्रवेश हो चुका था क्योंकि जहां जैन परम्परा के प्राचीन स्तर के आगम ग्रन्थ ऋषिभाषित में देवनारद को अर्हत्ऋषि कहकर सम्मानित ढंग से उल्लिखित किया गया है वहां इस कथाप्रसंग में नारद को असंयमी, अविरत और कलहप्रिय तथा पद्मनाभ के साथ मिलकर द्रौपदी के अपहरण की योजना बनानेवाला कहा गया है । उल्लेखनीय यह भी है कि इन नारद को कडच्छुप नारद कहा गया है । यद्यपि यह विवादास्पद ही है ऋषिभाषित के देवनारद और ज्ञाता के कडच्छुप नारद एक ही व्यक्ति है या अलग-अलग व्यक्ति है, यह कहना कठिन है। ___ द्रौपदी के इस कथाप्रसंग में प्रसंगवश पांचो पाण्डवों, कुन्ती और श्रीकृष्ण का उल्लेख भी है । कथा के अनुसार द्रौपदी का पद्मनाभ द्वारा अपहरण हो जाने पर पाण्डव चिन्तित होते हैं तथा द्रौपदी को खोजने में श्रीकृष्ण को ही समर्थ मानकर अपनी माता कुन्ती को श्रीकृष्ण के पास भेजकर द्रौपदी की खोज के लिए उनसे निवेदन करते है । इसमें कुन्ती को कृष्ण की पितृभगिनी कहा गया है । कृष्ण कुन्ती को आश्वस्त करते है कि मैं द्रौपदी की खोज करूंगा । वे नारद से द्रौपदी के अपहरण की घटना की जानकारी प्राप्त करते हैं तथा पाण्डवों को यह संदेश देते है कि वे पूर्व दिशा में गङ्गा नदी और समुद्र के सङ्गम स्थल पर ससैन्य तैयार होकर पहुंचे । कृष्ण स्वयं भी ससैन्य वहां पहुंचकर लवण समुद्र के मार्ग