________________
१६६
अनुसन्धान-७१
शङ्ख, सुदर्शन चक्र, कौमुदकी गदा, नन्दक खड्ग धारण करते है और उनका मुकुट कौस्तुभमणि से युक्त होता है । वैष्णव परम्परा में कृष्ण और बलदेव की वेश-भूषा एवं आयुध आदि की जो चर्चा है उससे इस विवरण की समानता है । यद्यपि हमें स्मरण रखना चाहिए कि ये सभी उल्लेख समवायाङ्गसूत्र के अन्तिम भाग में पाये जाते है जो उसके परिशिष्ट के रूप में है। इससे ऐसा लगता है कि इन्हें समवायाङ्ग में बाद में जोडा गया है। फिर भी वर्तमान समवायाङ्ग का जो कुछ स्वरूप हैं, वह ईसा की ५वीं शताब्दी में निश्चित हो गया था । अतः ये सारे विवरण उनसे प्राचीन ही है, परवर्ती नहीं । फिर भी यह मानने में हमें आपत्ति नहीं होना चाहिए कि यह समग्र विवरण हिन्दु परम्परा से प्रभावित है ।
कृष्ण के व्यक्तित्व के सम्बन्ध में आगम साहित्य में समवायाङ्ग के पश्चात् कृष्ण का जो प्राचीन उल्लेख हमें प्राप्त होता है, वह हमें ज्ञाताधर्मकथा में मिलता है । विद्वानों ने ज्ञाताधर्मकथा को लगभग ईसा की द्वितीय शताब्दी के आसपास की रचना माना है । ज्ञाताधर्मकथा में कृष्ण सम्बन्धी उल्लेख उसके शैलक एवं द्रौपदी नामक अध्ययनों में है । यद्यपि द्रौपदी नामक अध्याय का मुख्य प्रतिपाद्य विषय तो द्रौपदी के पूर्वभव एवं वर्तमानभव का चरित्रण है, किन्तु प्रसंगवश इसमें कृष्ण सम्बन्धी अनेक विवरण उपलब्ध है । विशेष उल्लेखनीय यह है कि यहां द्रौपदी के पांच पति होने की कथा को स्वीकारते हुए भी उसके व्यक्तित्व की चारित्रिक गरिमा को बनाये रखने के लिए उसके पूर्वभव की कथा भी जोडी गई । कथा का सारांश यह है कि द्रौपदी पूर्वभव में अपनी गुरुणी की आज्ञा न मानकर वनखण्ड में स्थित हो उग्र तपस्या करती है और प्रसंगवशात् वह वहां एक वेश्या को पांच प्रेमियों के साथ क्रीडा करते हुए देखती है । उस समय वह यह निश्चय कर बैठती है कि यदि मेरी तपस्या का फल हो तो मुझे भी भविष्य में पांच पतियों के साथ ऐसी क्रीडा करने का सौभाग्य प्राप्त हो । इस निश्चय (निदान) का परिणाम यह होता है कि उसे अपने वर्तमान भव में पांच पाण्डवों की पत्नी बनना पडता है । इस