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ओक्टोबर-२०१६
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में कृष्ण के जीवन-वृत्त का हमें कोई विवरण उपलब्ध नहीं होता है । ऋषिभाषित में वारिषेण कृष्ण के उपदेशों का विवरण है, किन्तु उनका देवकीपुत्र कृष्ण से सम्बन्ध जोड पाना कठिन है । मात्र उत्तराध्ययनसूत्र के रथनेमि (रहनेमिज्ज) नामक अध्ययन में राजीमती और रथनेमि के कथा प्रसंग में शौरीपुर नगर के वसुदेव नामक राजा की रोहिणी और देवकी नाम की रानियों के पुत्र के रूप में क्रमश: राम और केशव (कृष्ण) का उल्लेख है । इस कथाप्रसंग में केशव के द्वारा राजीमती का अरिष्टनेमि से विवाह निश्चित करने एवं अरिष्टनेमि के प्रव्रजित होने पर उन्हें शुभकामना प्रेषित करने एवं वन्दन करने का भी उल्लेख है । सम्भवतः यही एक ऐसा साहित्यिक प्राचीनतम आधार है, जहां कृष्ण जैन परम्परा में सर्वप्रथम उल्लिखित होते है । यद्यपि द्वितीय स्तर के आगम ग्रन्थों में अर्थात् ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दी में निर्मित आगम ग्रन्थों में कृष्णकथा का धीरे-धीरे विस्तार होता गया है । इन ग्रन्थों में समवायाङ्ग पूर्वभाग के ५४वें समवाय में २४ तीर्थङ्कर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव एवं ९ वासुदेव ये ५४ उत्तम पुरुष होते है - मात्र यह उल्लेख है। यहां इनके नामों का भी उल्लेख नहीं है । किन्तु समवायाङ्ग के ही अन्तिम भाग में बलदेवों एवं वासुदेवों के वर्तमान भव के नाम, पूर्व भव के नाम, निदानकारण और निदान नगरों के नाम तथा उनके माता-पिता, पूर्वभव के धर्माचार्य और वर्तमानभव के प्रतिशत्रु (प्रतिवासुदेव) के नाम आदि का उल्लेख है । इसी प्रसंग में नवें वासुदेव के रूप में कृष्ण का नाम आता है । कृष्ण के पिता के रूप में वसुदेव और माता के रूप में देवकी का उल्लेख यहां भी हमें प्राप्त होता है ।
इसी प्रसंग में सामान्य रूप से वासुदेवों और बलदेवों की सम्पदा, शारीरिक शक्ति, व्यक्तित्व आदि का विस्तृत उल्लेख किया गया है । इस चर्चा में जो महत्त्वपूर्ण उल्लेख है वह यह कि बलदेव कटिसूत्रवाले नीले कौशेयक वस्त्र को और वासुदेव कटिसूत्रवाले पीतकौशेयक वस्त्र को धारण करते है । इसी प्रकार यहां यह भी बताया गया है कि बलदेव हल और मूसल रूपी अस्त्रों को धारण करते है और वासुदेव शृङ्ग, धनुष, पाञ्चजन्य