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अनुसन्धान-७१
पर मिलते है, किन्तु जैन आगम साहित्य में जितना विस्तृत विवरण कृष्णकथा का मिलता है उतना रामकथा का नहीं । जैन आगमों में राम के नामनिर्देश के अतिरिक्त उनके जीवनवृत्त का कोई उल्लेख नहीं मिलता है । जब कि कृष्ण के जीवनवृत्त के अनेक उल्लेख उनमें उपलब्ध है । जैन परम्परा में कृष्ण के जीवनचरित्र को राम की अपेक्षा भी आगमसाहित्य में अधिक स्थान मिला है । आगम ग्रन्थों में समवायाङ्ग, उत्तराध्ययन, ज्ञाताधर्मकथा, अन्तकृत्दशा, प्रश्नव्याकरण आदि आगमों में कृष्ण सम्बन्धी उल्लेख हैं । आगम साहित्य में कृष्ण के चरित्र को राम के चरित्र के अपेक्षा जो प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ है, उसका कारण केवल यही नहीं है कि वे जैन परम्परा के २२वें तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि के चचेरे भाई है, अपितु उनका वासुदेव (अर्द्धचक्री) होना भी है । जैन परम्परा में राम एवं कृष्ण दोनों की गणना शलाकापुरुषों में की गई है, किन्तु जहां राम को बलदेव के रूप में स्वीकृत किया गया है वहीं कृष्ण को वासुदेव के रूप में स्वीकृत किया गया है । बलदेव की अपेक्षा वासुदेव का पद निश्चय ही अधिक महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है, क्योंकि वासुदेव शासनसूत्र का स्वयं नियामक होता है, जब कि बलदेव मात्र उसका सहयोगी । साथ ही जैन परम्परा में कृष्ण को भविष्य में होनेवाले १२वें तीर्थङ्कर के रूप में भी स्वीकार किया गया है और यह सत्य है कि जैन परम्परा में तीर्थङ्कर ही सर्वोच्च व्यक्तित्व है । इस आधार पर हम कह सकते हैं कि राम की अपेक्षा कृष्ण ने जैनों को अधिक प्रभावित किया है।
जहां तक कृष्ण के जीवन-वृत्त के सम्बन्ध में विस्तृत एवं स्वतन्त्र ग्रन्थ का प्रश्न है संस्कृत एवं अपभ्रंश में हरिवंशपुराण के रूप में सर्वप्रथम ऐसे स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे गये । किन्तु आगे चलकर रिटुनेमिचरिऊ, नेमिनाहचरिउ, पज्जुनचरिउ, कण्हचरित आदि अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं, जिनमें कृष्ण-कथा को प्रमुख स्थान मिला है।
__ जैन आगम साहित्य में प्राचीनतम स्तर के अर्थात् ईस्वी पूर्व के ग्रन्थों यथा आचाराङ्ग, ऋषिभाषित, सूत्रकृताङ्ग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक