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________________ ओक्टोबर-२०१६ १६३ प्राकृत एवं अपभ्रंश जैनसाहित्य में कृष्ण - प्रो. सागरमल जैन राम और कृष्ण ऐसे व्यक्तित्व है, जो युगो-युगो से भारतीय जनमानस के श्रद्धा के केन्द्र रहे है । इन दोनों व्यक्तित्वों के जीवनचरित्रों ने भारतीय धर्म, सभ्यता और संस्कृति को बहुत अधिक आन्दोलित और प्रभावित किया है । वैष्णवधर्म के उद्भव एवं भक्तिमार्ग के विकास के साथ ये दोनों व्यक्तित्व अधिकाधिक जनश्रद्धा के केन्द्र बनते चले गए । इनके जीवनवृत्तों पर रचित रामायण, महाभारत और भागवत भारतीय परम्परा के ऐसे ग्रन्थ है, जो सभी भारतीय लोकभाषाओं में अनूदित है और भारतीय जनसाधारण के द्वारा अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ पढे व सुने जाते है । साहित्यिक रुझान की दृष्टि से राम के चरित्र की अपेक्षा भी कृष्ण का चरित्र पूर्व मध्यकाल में अधिक प्रभावी रहा है । राम के चरित्र को अधिकाधिक लोकव्यापी बनाने का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस को है । राम सदाचार-सम्पन्न, सन्मार्गसंरक्षक एक वीर पुरुष है : जब कि कृष्ण एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी है । वे एक नटखट बालक, रसिक युवा, धर्म और समाज के संरक्षक वीर पुरुष, कुशल राजनेता तथा धर्म एवं अध्यात्म के उपदेष्टा प्रज्ञा-पुरुष सभी कुछ है । उनके जीवन के इस बहुआयामी स्वरूप ने उन्हें अधिक प्रभावी बना दिया है । अर्धमागधी आगम साहित्य में कृष्ण : जहां तक जैन परम्परा का प्रश्न है, उसने राम और कृष्ण दोनों के कथानकों को अपने में आत्मसात् करने का प्रयत्न किया है । यद्यपि जैन परम्परा में विमलसूरि के पउमचरियं (प्राकृत), जिनसेन के पद्मपुराण (संस्कृत), रविषेण के पद्मचरित (संस्कृत) एवं स्वयम्भू के पउमचरिउ (अपभ्रंश) के साथ-साथ राजस्थानी और हिन्दी में अनेक ग्रन्थ रामकथा
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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