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________________ १५८ अनुसन्धान-७१ जिनप्रतिमा की नितान्त निश्चलता वीतरागता का लक्षण है । उसकी यह प्रतिमा पूजा और ध्यान के योग्य है । इसको रूपस्थध्यान कहा जाता है । क्योंकि वीतराग भगवान पर ध्यान करते हुए भक्त भी वीतराग हो सकता है 'वीतरागो मुच्येत वीतरागं विचिन्तयन्' (योगशास्त्र ९.१३). चेहरा का सौन्दर्य एक सौम्य मुसकराहट से रेखाङ्कित किया जा सकता है (दे० Balbir २०१३) । यह आत्मसंतुष्टि को और लोक से पूरी विरागता को अभिव्यक्त करती है। जिन के अतिरिक्त बाहुबलि की मूर्ति भी जैनियों के लिए सुन्दरता का आदर्शिक उदाहरण है। श्रवणबेलगोल की मूर्ति सबसे प्रसिद्ध है । वह निश्चल खडा हुआ है । कन्नड भाषा कवि कुवेम्पु ने उसकी प्रशंसा ऐसे की है। 'हे योगीश, आपके शान्त मुख से जो मुसकराहट आती है उसका क्या अर्थ है ? क्या यह ब्रह्मानन्द का बिम्ब है? या हम सब लोगों की मूढता के सामने व्यंग्य है?' (दे० Balbir २०१३) तो जिन अद्वितीय है, वह दूसरी देवताओं से अत्यन्त भिन्न है, साधारण साधुओं से भी भिन्न है । जिनप्रतिमा जिन के गुणों को प्रकट करती है और प्रतिमा के द्वारा दिखाया हुआ जिन का शारीरिक रूप अपूर्व तथा सुन्दर है । ३. जिनप्रतिमा का सौन्दर्य अलङ्कार सहित या अलङ्कार रहित ? ___ हम कह चुके हैं कि प्राय: श्वेताम्बर जिनप्रतिमा को अलङ्कार सहित और दिगम्बर बिना अलङ्कार के उनकी पूजा करते हैं । इसकी चर्चा १७वीं शती के मेघविजय और बनारसीदास के बीच में हुई (दे० Granoff २०१३) । सौन्दर्य के विषय में चर्चा है कि क्या जिनप्रतिमा अलङ्कारों और वस्त्रों से ढक दिया जाए । तो मेघविजय कहते हैं हां, अलङ्कार और वस्त्र आवश्यक हैं । बनारसीदास ने इसका अपवाद किया है । वह कहता है जिनप्रतिमा प्राकृतिकरूप से सुन्दर है । 'भगवद्विम्बस्य स्वयं शोभनत्वम्' (युक्तिप्रबोध पृ. ६७)
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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