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________________ ओक्टोबर-२०१६ १५७ प्रतिमा को देखकर कहा - वह सम्पूर्ण देवता है, यह उसके रूप से पता चलता है। ‘स जिन: क्वास्ते ? सूरिः - स्वरूपतो मुक्तौ, मूर्तितस्तु जिनायतने । (...) शान्तं कान्तं निरञ्जनं रूपं दृष्ट्वा प्रबुद्धो बभाषे । अयं निरञ्जनो देव आकारेणैव लक्ष्यते' (प्रबन्धकोश ९, पृ. ४०). ऐसे सन्दर्भो में हम देख सकते हैं कि जिन और अन्य देवताएँ एक दूसरे से कितने भिन्न होते हैं । जिनप्रतिमा शान्तिपूर्ण और वीतराग है, इसके विरुद्ध अन्य देवताएँ काम तथा अनुराग से ओतप्रोत हैं । 'दीपार्णव' के लेखक ने कहा है कि जिनप्रतिमा में दो भुजाएँ और एक ही चेहरा है और वह निर्गुण है (२१.२-३) । इसमें त्रिशूल, पाश और अन्य पदार्थ नहीं हैं जो उथलपुथल और आसक्ति के चिहन हैं (वीतरागस्तोत्र, १८वां प्रकाश) । जिन और बुद्ध प्रतिमाओं का विरोध है हिन्दु देवताओं के बहुत्व के समक्ष । चतुर्भुज, षड्भुज, वाहन पर बैठी हुई ईत्यादि मूर्तियाँ जैनों के बीच में तो मिलती हैं पर ये जैन देवताओं की मूर्तियाँ हैं और देवताएँ मुक्तजीव नहीं हैं । वे संसारिक जीव होते हैं जो देवगति में उत्पन्न हुए हैं । अपनी 'अन्ययोगव्यवच्छेदिका' में हेमचन्द्राचार्य ने रेखाङ्कित किया है कि ध्यानमुद्रा में आसीन जिनप्रतिमा और अन्य देवताओं की प्रतिमा एक दूसरे से बहुत दूर होते हैं । “O Lord of Jinas, the lords of other faiths have not even learned to master your outward posture, the way you sit with legs folded, body relaxed, your eyes focused unwavering on the tip of your nose. What could they know of your inner virtues?” (२०; Granoff २०१२) __ अपने 'महादेवस्तोत्र' में उन्होंने शिव और जिन का अंतर समझाया । उसके अनुसार केवल जिन 'देवता' शब्द के योग्य हैं । जिन को शङ्कर कहा गया है जो शान्ति लाता है । खडे हुए अथवा आसीन, ध्यानमग्न, निःशस्त्र और बिना पत्नी के साथ हैं । निरायुध होने से क्रोध, मान, माया, लोभ, जन्म, जरा, मरण, भय और हिंसा के अभाव का सूचक है ।
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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