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ओक्टोबर २०१६
प्रभुजी ! प्रसन्न वदन तुम्हारा नजर अरु शमरसभरी
बुध - अबुध जनता को तथा प्रियकारिणी वाणी खरी ।
(विजयशीलचन्द्रसूरि १९९६ पृ० २०)
मुख- मुद्रा सौम्य होनी चाहिये । यह विचार आधुनिक गीतों में भी उपलब्ध है ।
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तुम्हारी आँखों में स्नेह है, और तुम्हारे चेहरे पर शान्ति का सन्देश है । तुम्हारे वक्ष:स्थल पर अहिंसा विराजमान है, तुम्हारे होठों पर राजकीय सत्य है । (दे० Kelting २००१ पृ० ८९)
जिन की शुद्धता चन्द्रमा तथा सूर्य से अधिक प्रकाशमान है ।
'नित्योदयं दलितमोहमहान्धकारं
गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् ।
विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्ति विद्योतयज् जगदपूर्वशशाङ्कबिम्बम् ' ॥ ( भक्तामरस्तोत्र १८ ).
आपका मुख-कमल एक अद्भुत चन्द्रमा है जो सम्पूर्ण लोक को प्रकाशित करनेवाला है । उसकी कान्ति अल्प नहीं है । उसका उदय सदा ही होता है । वह समस्त जगत का अज्ञान मोह रूप अन्धकार नष्ट कर देता है । न राहु न बादल उसको ढँक सकते हैं ।
कलाकृतियों में आँखें जो बडी-बडी हैं खुली या बन्द हैं । आँखों का दृष्टिकोण या तो नाक का है अथवा किसी विशेष दिशा में नहीं है । फिर भी एक दिगम्बर शास्त्र के अनुसार, जो मूर्तिप्रतिष्ठा के विषय को छूता है, अच्छा है कि आँखें खुली हों क्योंकि वह चेहरे के सौन्दर्य को बढा देता है । यह भी कहा गया है
'लक्षणैरपि संयुक्तं बिम्बं दृष्टिविवर्जितम् ।
न शोभते यतस्तस्मात् कुर्याद् दृष्टिप्रकाशनम् ॥७२॥
नात्यन्तोन्मीलिता स्तब्धा न निस्फारितमीलिता । तिर्यगूर्ध्वमधो दृष्टिं वर्जयित्वा प्रयत्नतः ॥७३॥