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अनुसन्धान-७१
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व्याख्यामें पूछा गया है- तीर्थङ्कर सुरूप हैं अथवा नहीं । उसके उत्तर में कहा गया है - धर्म के अभ्यास से सौन्दर्य आता है । जो सुन्दर लोग हैं वे भी धर्म का अभ्यास करते है । और हम सुन्दर व्यक्ति को अधिक सावधानी से सुनते हैं । इसीलिए हम जिन के सौन्दर्य की प्रशंसा करते हैं ।
'धम्मोदएण रूवं करेंति रूवस्सिणो वि जइ धम्मं । गज्झवओ य सुरूवो पसंसिणो रूवं एवं तु' ॥ (१२०१)
संस्कृत टीकाकार ने बताया कि जब लोग शारीरिक सौन्दर्य की प्रशंसा करते हैं, वह जैन धर्म के अभ्यास का फल है । यह भी कहना होगा कि सुन्दर व्यक्ति धर्म का अभ्यास करते हैं, और उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा मिलती है । और हम सुन्दर लोग जो कहते हैं उस पर ध्यान देते हैं । जिन के अतीव सौन्दर्य से विनम्र हो जाते हैं । ( Granoff २०१२)
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'औपपातिकसूत्र' में महावीर भगवान का वर्णन जीवित व्यक्ति का वर्णन है । महावीर अपने सारे अनुयायियों के साथ अधिक बडे समूह में व्याख्यान के लिए आते हैं । अब उनका प्रतिनिधित्व क्यों किया जाए ? क्या उनके विचारणीय या शारीरिक श्रेष्ठता को दिखाता है, या इन दोनों के पक्ष में है ? २. जिन प्रतिमा का सौन्दर्य ।
सारे जैन इतिहास में जिन के शरीर की प्रशंसा की गयी है । उदाहरणतः १०वीं शती में 'समयसारकलश' में दिगम्बर लेखक अमृतचन्द्र ने कहा 'कान्त्यैव स्नपयन्ति ये दश दिशो धाम्ना निरुन्धन्ति ये । धामोद्दाम-महस्विनां जनमनो मुष्णन्ति रूपेण ये । दिव्येन ध्वनिना सुखं श्रवणयोः साक्षात् क्षरन्तोऽमृतं । वन्द्यास्तेऽष्टसहस्र-लक्षण-धरास्तीर्थेश्वराः सूरयः ' ॥(२४) अनुवादः - लोकमानस रूप से रवितेज अपने तेज से । जो हरें निर्मल करें दर्शादिश कान्तिमय तनतेज से ॥ जो दिव्यध्वनि से भव्यजन के कान में अमृत भरें । उन सहस आठ लक्षण सहित जिनसूरि को वंदन करें ॥