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ओक्टोबर-२०१६
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___ उनके दांतों की श्रेणी शुभ निष्कलङ्क चन्द्रमा के टुकडे निर्मल से भी निर्मल शङ्ख, गाय के दूध, फेन, कुन्द, पुष्प, जलकण और कमलनाल के समान उज्ज्वल थी । दात अखण्ड, परिपूर्ण, अस्फुटित, सुदृढ, टूट फूटरहित, अविरल, परस्पर सटे हुए थे । वे सुस्निग्ध चिकने आभामय सुजात सुन्दराकार दीखते थे । अत: हम यह समझ सकते हैं कि स्तोत्रकारों ने कभी-कभी जिन के दाँतों की प्रशंसा क्यों की है। उदाहरण के लिए 'शोभनस्तुति' में भगवान पार्श्व के विषय पर यह कहा गया है - ...... स पार्थो रुचिर-रुचि-रदः' (शोभनस्तुति ८९) ।
१६० संस्कृत प्रश्नोत्तरों में, जैन लेखक जिनवल्लभसूरिने, १२वीं शती में सवाल पूछा :
'काश्चारुचन् समवसृत्यवनौ भवाम्बुमध्यप्रपातिजनतोद्धृतिरज्जुरूपा: ?'
वे कौन-सी चीजें हैं जो समवसरण-स्थान पर चमकचमकती सामान्य जन्तु को पुनर्जन्म-सागर से रस्सियों की तरह छुटकारा दिलाती हैं ?
उत्तर है । जिन के दाँतों की चमक ।
महावीर के शारीरिक सौन्दर्य का वर्णन उनके आत्मीयता की प्रकाशता के वर्णन के पश्चात् आता है, यह केवल अचानक नहीं है । सौन्दर्य और आत्मबुद्धि का घनिष्ठ सम्बन्ध स्पष्टता से कहा गया है । उत्तरकालीन ग्रन्थों में शरीर का चमत्कारक सौन्दर्य ३४ अतिशयों में सर्वप्रथम अतिशय के रूप में प्रकट होता है और सहोत्थ अतिशयों में आता है । अमानवीय गुणों का समर्थन है । जिन अद्भुत रूप का है । (दे० 'अभिधानचिन्तामणि १.५७) । जिन का शरीर सुन्दर ही नहीं किन्तु अप्राकृतिक है । उनके अंग सम्पूर्णतया परिवर्तित हो गये है, और उनके शारीरिक धर्म का आभास नहीं होता । उनका श्वास कमल की तरह सुगन्धि होता है । उसका खून दूध की धारा के समान है और गन्धरहित होता है । वह चाहे खाना पचाए या खाने का निष्कार करे, यह सब अदृश्य होता है । वास्तव में शारीरिक सौन्दर्य धार्मिक सिद्धि का लक्षण है । इसके विरुद्ध कुरूपता और भयंकर रूप नरकवासियों के चिह्न है । उनके पूर्वकर्मों का फल है । 'बृहत्कल्पभाष्य' की प्राकृत