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अनुसन्धान- ७१
दोनों को महापुरुषलक्षण लोकोत्तर विशेषता देते हैं । महावीर के शरीर को 'विशिष्टरूप' कहते हैं । वह सामञ्जस्यपूर्ण, चारुकर, चमत्कारपूर्ण, सुगन्धि है । जिन की असाधारणता को दिखाने के लिए सारे काव्यात्मक साधारण उपमानों और उपमेयों का प्रयोग किया गया है । उदाहरणत:
'उवचिय - सिलप्पवाल - बिम्ब-फल- -सन्निभाहरोठे'
उनके होंठ संस्कारित या सुघटित मूंगे की पट्टी जैसे या बिम्बफल के सदृश थे ।
'आणामिय-चाव - रुइल- किण्हब्भराइ-तणु-कसिण- णिद्ध-भमुहे' उनकी काली एवं स्निग्ध भौंहें वक्र धनुष के समान सुन्दर, टेढी, काले बादल की रेखा के समान पतली थीं ।
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'वर-महिस-वराह-सीह- सद्दूल - उसभ - नाग - वर पडिपुण्ण-विउल
क्खन्धे'
उनके सुपुष्ट कन्धों जैसे परिपूर्ण एवं विस्तीर्ण थे ।
कन्धे भैंसे, सूअर, सिंह, चीते, साण्ड तथा उत्तम हाथी के
'अकरण्डुय - कणग-रुयय-निम्मल - सुजाय-निरुवहय - देह धारी, अठ्ठ सहस्स - पडिपुण्ण - वर- पुरिस- लक्खण-धरे'
उनका शरीर स्वर्ण के समान कान्तिमान्, निर्मल, सुन्दर, रोग-दोष वर्जित था तथा उस में उत्तम पुरुष के १००८ लक्षण पूर्णतया विद्यमान
'छाया-उज्जोइयंगमंगे'
प्रत्येक अङ्ग दीप्ति से उद्योतित था ।
शरीर का कोई भाग इस वर्णन से खाली नहीं है । पर मुख और चेहरा का वर्णन महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मुख से ही भाषा का अध्यापन निकलता है । दाँतों के सौन्दर्य का वर्णन भी दिया गया है ।
'अखण्ड - दन्ते, अविरल - दन्ते, अफुडिय-दन्ते, सुणिद्ध-दन्ते, सुणिद्धदन्ते, सुजाय - दन्ते, एग- दन्त- सेढी विव अणेग - दन्ते'