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________________ १४६ अनुसन्धान- ७१ दोनों को महापुरुषलक्षण लोकोत्तर विशेषता देते हैं । महावीर के शरीर को 'विशिष्टरूप' कहते हैं । वह सामञ्जस्यपूर्ण, चारुकर, चमत्कारपूर्ण, सुगन्धि है । जिन की असाधारणता को दिखाने के लिए सारे काव्यात्मक साधारण उपमानों और उपमेयों का प्रयोग किया गया है । उदाहरणत: 'उवचिय - सिलप्पवाल - बिम्ब-फल-‍ -सन्निभाहरोठे' उनके होंठ संस्कारित या सुघटित मूंगे की पट्टी जैसे या बिम्बफल के सदृश थे । 'आणामिय-चाव - रुइल- किण्हब्भराइ-तणु-कसिण- णिद्ध-भमुहे' उनकी काली एवं स्निग्ध भौंहें वक्र धनुष के समान सुन्दर, टेढी, काले बादल की रेखा के समान पतली थीं । - 'वर-महिस-वराह-सीह- सद्दूल - उसभ - नाग - वर पडिपुण्ण-विउल क्खन्धे' उनके सुपुष्ट कन्धों जैसे परिपूर्ण एवं विस्तीर्ण थे । कन्धे भैंसे, सूअर, सिंह, चीते, साण्ड तथा उत्तम हाथी के 'अकरण्डुय - कणग-रुयय-निम्मल - सुजाय-निरुवहय - देह धारी, अठ्ठ सहस्स - पडिपुण्ण - वर- पुरिस- लक्खण-धरे' उनका शरीर स्वर्ण के समान कान्तिमान्, निर्मल, सुन्दर, रोग-दोष वर्जित था तथा उस में उत्तम पुरुष के १००८ लक्षण पूर्णतया विद्यमान 'छाया-उज्जोइयंगमंगे' प्रत्येक अङ्ग दीप्ति से उद्योतित था । शरीर का कोई भाग इस वर्णन से खाली नहीं है । पर मुख और चेहरा का वर्णन महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मुख से ही भाषा का अध्यापन निकलता है । दाँतों के सौन्दर्य का वर्णन भी दिया गया है । 'अखण्ड - दन्ते, अविरल - दन्ते, अफुडिय-दन्ते, सुणिद्ध-दन्ते, सुणिद्धदन्ते, सुजाय - दन्ते, एग- दन्त- सेढी विव अणेग - दन्ते'
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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