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________________ ओक्टोबर २०१६ पहली अवस्था महावीर की सारी कार्यवाही और गुणों का वर्णन है । वे अपने युग में धर्म के आदि प्रवर्तक थे, चतुर्विध धर्मतीर्थ के प्रतिष्ठापक थे, आत्मशौर्य में पुरुषों में सिंह सदृश थे, सभी प्राणियों के लिये अभयदान देनेवाले थे, राग आदि के जेता थे, संसारसागर को पार कर जाने वाले, दूसरों को भी संसार सागर से पार उतारने वाले थे इत्यादि । तीसरी अवस्था में उनके आत्मिक वैभव का विवरण है । वे प्राणातिपात आदि आस्रवरहित ममतारहित अकिंचन थे । वे भव-प्रवाह को नष्ट कर चुके थे, प्रेम, राग, द्वेष और मोह का क्षय कर चुके थे । चक्र, छत्र, चंवर तथा आकाश के समान स्वच्छ स्फटिक से बने पादपीठ सहित सिंहासन एवं धर्मध्वज ये उनके आगे आकाश से अन्तरिक्ष में चलते थे । दूसरी अवस्था में अत्यन्त विवरण सहित भगवान महावीर का शरीरसौष्ठव है, ७४ बहुव्रीहि समासों द्वारा सिर से पैर तक कालिदास से लेकर बाद तक के अनुसार नख - शिखा का वर्णन है। भगवान महावीर के शरीर की विशेषता के विषय में उनके शरीर की ऊंचाई, ढांचा और असामान्यता का विवरण है । - १४५ -नाराय 'सत्त - हत्थुस्सेहे, सम- चउरंस-संठाण-संठिए, वज्ज-1 - रिसह-न संघयणे' उनके शरीर की ऊंचाई सात हाथ की थी, उनका संस्थान समचौरंस था तथा शरीर की रचना वज्र - ऋषभ नाराच संहननयुक्त थी । वज्रऋषभनाराच संघयण में एक दूसरे से गाँठ लगाकर हड्डियों का परस्पर सम्बन्ध है, जिसके बीच में हड्डी का ही पट और कील होते है । समचौरंस पर्यङ्कासन में स्थित व्यक्ति को दाएँ घुटने से बाएँ कंधे पर्यन्त का अन्तर और दाएँ स्कन्ध से बाएँ घुटने के बीच में रहा अन्तर । ठीक वैसे ही दो घुटनों का अन्तर और दो घुटनों के मध्य भाग से ललाटप्रदेश तक का अन्तर । उपरोक्त चारों के बीच रहा अन्तर (दूरी) एक सा होता है । इसका अर्थ है कि उनका शरीर अच्छी रचना का था । जैन कर्मग्रन्थों में कहा गया है कि शरीर - रचना व्यक्ति के कर्म के ऊपर है । इसलिए लोगों के शरीरों के रूप या ढांचे भिन्न भिन्न होते हैं । ऐसे वर्णन से पता चलता है कि जिनशरीर साधारण व्यक्तियों के शरीर से विशेष होता है । अर्थात् जिन, और बुद्ध भी,
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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