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________________ ओक्टोबर-२०१६ १४३ सौन्दर्य और शान्ति जिनसौन्दर्य और प्रतिमाओं पर जैन विविध विचार . - नलिनी बलबीर प्रो. सर्बन नुवेल विश्वविद्यालय, पैरिस, फ्रांस विश्वविख्यात विद्वान डाक्टर श्री मधुसूदन ढांकी (१९२७-२०१६), जिनको सब लोग ढांकी साहब कहकर बुलाते थे, प्राचीन तथा मध्यकालीन भारतीय देवालय स्थापत्य के विषयों में प्रधान हुए हैं । उन्होंने शास्त्रीय सङ्गीत एवं निर्ग्रन्थ साहित्य को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। आज के ज्ञान अन्धकार को उनकी ज्योति प्रकाशित कर रही है। इन महान संशोधकने कई पीढियों के छात्रों और गवेषकों का मार्ग प्रदर्शन किया और उनके अध्ययन एवं अध्यापन को सफल किया है । रसिकहदय ढांकी साहब जैन साहित्य के विभिन्न पदों ओर स्तोत्रों को मानता देते थे। उनकी स्मृति में मैं कुछ पुष्प अर्पण करती हूँ । इस सन्दर्भ में उनका लेख The Jina Image and the Nirgrantha Agamic and Hymnic Imagery (१९८९ एवं २०१२) विशेषतः प्रेरणात्मक है । सौन्दर्य और रसास्वादन संस्कृत परम्परा में विविध प्रकार से मनन और विचार विनिमय प्रकट हुए हैं । इसका विकास शुद्ध साहित्यिक या रसास्वाद के दृष्टिकोण से हुआ है । अथवा प्राकृत भाषाओं में लिखे हुए ग्रन्थों के आधार पर मैं जिनों के सौन्दर्य के विचारों को प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगी । बुद्ध और जिन की मुसकराहट के विषय पर अपने लेख (Balbir २०१३) और जिनमूर्ति के ऊपर अन्य विद्वानों के अर्वाचीन लेखों का उपयोग भी मैं करती हूँ (जैसे Granoff २०१२ एवं २०१३) । जैसे ढांकी साहबने समझाया (The Agamas show toward the actual representation of the Jina an attitude which is) ‘non-committal and neutral, even cool
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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