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ओक्टोबर-२०१६
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प्रदेशराशि वास्तवमां Px[(S+1)+(S+2)+(S+3)....+A] जेटलो नथी, S+1, S+2 अम दरेक सङ्ख्या साथे गुणाकार वखते Pनी जग्याले क्रमशः नानी सङ्ख्या आवती जाय छे. तो पण द्रव्यराशिना आ घटाडा सामे, प्रदेशराशिनो वधारो सङ्ख्याशास्त्रनी दृष्टिले अटलो मोटो होय छे के जेने लीधे परमाणुओनी अपेक्षाओ फक्त असङ्ख्यातप्रदेशिक स्कन्धोनो प्रदेशराशि ज अनन्तगुण थईने रहे छे. अने आमां अनन्तप्रदेशिक स्कन्धोनो तेम ज व्यणुक सिवायना सङ्ख्यातप्रदेशिक स्कन्धोनो पण प्रदेशराशि उमेरीओ तो ओ कुल जथ्थो, परमाणुओ करतां विशेषाधिक (-द्विगुण करतां सहेज ओछा) अवा व्यणुकप्रदेशराशि करतां अनन्तगुण ज थाय ओ सहज छे. आ ज वात अनुयोगद्वारसूत्र मां प्रतिपादित थई छे अने वृत्तिकार भगवन्तो द्वारा समर्थित थई छे.
वळी, दिव्यदर्शन ट्रस्ट-धोळका तरफथी सं. २०५३ मां अनुयोगद्वारसूत्र ना टिप्पणकार श्री द्वारा लिखित 'सत्पदादिप्ररूपणा' नामनुं पुस्तक प्रकाशित थयुं छे. आ पुस्तकनी प्रस्तावनामां टिप्पणकारश्रीओ जणाव्या मुजब ते पुस्तकगत तमाम प्ररूपणाओ पूज्य आचार्यश्री जयघोषसूरिजी म.नी छे. आ पुस्तकमां पृष्ठ १४३ पर अल्प-बहुत्वद्वारमां परमाणुओ करतां स्कन्धोनी सङ्ख्या अनन्तगुण अने स्कन्धो करतां तेमना प्रदेशोनी सङ्ख्या अनन्तगुण जणाववामां आवी छे. आ प्ररूपणामां बे वात विचारणीय छे -
१. अनुयोगद्वारसूत्र मां, पूर्वे जोयुं तेम, परमाणुओ करतां स्कन्धोनी सङ्ख्या असङ्ख्यगुण जणाववामां आवी छे, अनन्तगुण नहि. ज्यारे अत्रे टिप्पणकार श्रीओ परमाणुओ करतां स्कन्धोनी सङ्ख्या अनन्तगुण जणावी छे. अनुयोगद्वारसूत्र साथे आ प्ररूपणानो स्पष्ट विरोध आवे छे.
२. परमाणुओ करतां स्कन्धोनी सङ्ख्या जो अनन्तगुण होय अने तेमना प्रदेशोनी सङ्ख्या जो तेमनाथी पण अनन्तगुण होय तो परमाणुओ करतां विशेषाधिक व्यणुकप्रदेशो करतां आनुपूर्वीद्रव्योनी प्रदेशसङ्ख्या, टिप्पणकारश्रीना मते पण, अनन्तगुणी ज सिद्ध थाय छे. अने अनुयोगद्वारसूत्र मां पण ज प्रमाणे जणावायुं छे. तो सत्पदादिप्ररूपणा मां परमाणुओ करतां स्कन्धोनी
३. त्यां अनन्तगुण सूचववा माटे A सज्ञा प्रयोजाई छे.