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ओक्टोबर-२०१६
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वृत्तिकार भगवन्तोनी आ वात वांचीने घडीभर आपणे मूंझाई जईओ के सूत्रने वफादारीपूर्वक अनुसरनारा आ भगवन्तोनी वात आपणे मानवी के पछी सूत्रना ओ पाठने प्रामादिक गणनारा अने सङ्ख्याशास्त्रथी अने खोटो ठेरवनारा टिप्पणकारश्री अने अमने समर्थन आपनारा महात्माओ उपर आपणे भरोसो मूकवो ?
वळी, टिप्पणकारश्रीओ स्वमतना समर्थनमा जे तर्को आप्या छे ते पण विचारणीय लागे छे. अन्तरद्वारमां, परमाणुओ स्कन्ध साथे जोडाईने फरीथी परमाणु बने तेने सम्बन्धित सूत्रनु, अल्प-बहुत्वद्वारगत सूत्र साथे विरोध आवे ते रीते तात्पर्य तारवयूँ कोई रीते वाजबी नथी. पर्वापरविरोध न आवे अने सूत्रोनो सुपेरे समन्वय सधाई शके तेवी रीते सूत्रोनी वृत्ति रचवानी जैन श्रमणोनी मान्य प्रणालिका छे. अने अनुसरीने, बन्ने सूत्रोनां तात्पर्यनो समन्वय थई शके ओ रीते विचारणा करवी जोईओ अम अमने लागे छे. स्वयं टिप्पणकार श्रीओ ज अन्यत्र "आपणने न समजातुं विवक्षावैचित्र्य होई शके" अम कहीने सूत्रनी सङ्गति साधी आपी छे. तो आ सन्दर्भे पण अq न समजी शकाय ? अने तो पछी पाठ बदलवानी जरूर रहे खरी ?
बीजुं, सङ्ख्याशास्त्रनी रीते पण परमाणुओ करतां आनुपूर्वीद्रव्योनो प्रदेशराशि अनन्तगुण ज थाय छे ओ तो वृत्तिकार भगवन्तोओ आपेली युक्तिओ परथी जणाई ज जाय छे, तो पण टिप्पणकार श्रीनी शैलीओ ज आ वात विशे थोडंक विचारीओ.
प्रज्ञापनाजी मां परमाणुओ करतां सङ्ख्यातप्रदेशिक स्कन्धोने सङ् ख्यातगुण अने तेमना करतां तेमना प्रदेशराशिने सङ्ख्यातगुण कह्यो छे. टिप्पणकारश्रीना जणाव्या मुजब अत्रे बन्ने ठेकाणे सङ्ख्यातगुण वृद्धि कहेवा छतां, परमाणुओ करतां सङ्ख्यातप्रदेशिक स्कन्धोनो कुल प्रदेशराशि असङ् ख्यगुण समजवानो छे. ते आ रीते -
सङ्ख्यातप्रदेशिक वर्गणाओमां परमाणुथी मांडीने उत्कृष्टसङ्ख्यातप्रदेशिक सुधीना स्कन्धोनी वर्गणाओ समाय छे. आमां दरेक वर्गणामां,
२. अनुयोगद्वारसूत्र-सटिप्पण - पृष्ठ-९४