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________________ ओक्टोबर-२०१६ १३७ प्रस्तुत अनुयोगद्वारसूत्रनी वृत्तिमां ज अक ठेकाणे श्री हरिभद्रसूरिजी अ प्रश्नकर्तानी दलील सामे अपायेला जवाब- समापन, तर्क करतां आगमप्रामाण्यने ज वधु महत्त्वपूर्ण जणावीने कर्यु छे - "कथमिदं ज्ञायते इति चेत् ? उच्यते - आचार्यप्रवृत्तेः, तथाहि - इदमेव सूत्रं ज्ञापकमित्यलं चसूर्येति ।" (सूत्र-१११) तेथी सूत्रगत कोईक बाबत तर्कबुद्धिथी न समजाय तो पण, आगमप्रामाण्यथी अने स्वीकारीने - सत्य मानीने अने सिद्ध करवा माटे तर्कनी गवेषणा करवी जोईओ, अना खण्डन माटे नहीं. ___ बीजी वात, प्रतिलेखक लहियानी भूलने लीधे बन्ने ठेकाणे पाठमां भ्रष्टता आवी हशे अने तेथी 'असंखेज्जगुणाई'- 'अणंतगुणाई' थई गयुं हशे अq विधान थोडं विचित्र लागे छे. हस्तप्रतो साथे काम पाडनारा सामान्य अभ्यासीने पण ख्यालमां होय ज के लहियाना हाथे थती भूलो कंई बधी ज प्रतोमा प्राय: एकसरखी रीते न थाय. टिप्पणकारश्रीओ पोताना ग्रन्थमां अनुयोगद्वारसूत्र नी जे वाचनाने मान्य करी छे, ते वाचनानुं संशोधनसम्पादन आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी ओ कर्यु छे. तेओओ आ कार्यमां अनुयोगद्वारसूत्र नी बृहद् वाचना तेमज सङ्क्षिप्त वाचना - बन्ने वाचनानी, अलग-अलग कुलनी, उपलब्ध तमाम महत्त्वपूर्ण प्रतिओनो उपयोग कर्यो छे. आ प्रतो कोई ओक ज प्रतनी नकलरूप नथी ज, के जेथी ते अेक मूल प्रतनी भूल बधी प्रतोमां चाली आवी छे अम कही शकाय. अने तेम छतां कोई पण प्रतमां टिप्पणकारश्रीओ सूचवेलो पाठ न मले, पण तेओ जेने प्रामादिक पाठ गणे छे ते ज पाठ मळे त्यारे तेओना विधान पर पुनर्विचार करवानी आवश्यकता छे. ____वळी, धारो के अक क्षण माटे मानी लईओ के अनुयोगद्वारसूत्र ना तमाम प्रतिलेखको अकसरखी भूल करी हती, अने ओ भूलवाळी प्रतो आजे आपणी सामे छे, अटलुं ज नहि, पण आजथी हजार-पंदरसो वर्ष पूर्वे अनुयोगद्वारसूत्र ना वृत्तिकार भगवन्तो सामे पण ओ भ्रष्ट पाठवाळी ज प्रतो हती; तो पण प्रश्न तो थाय ज - थवो ज जोईओ के अनुयोगद्वारसूत्र ना वृत्तिकार श्रीजिनदासगणि महत्तर, श्रीहरिभद्रसूरिजी, मलधारी श्रीहेमचन्द्र सूरिजी जेवा समर्थ श्रुतधर भगवन्तो पण ओ भूलने पकडी न शक्या ?
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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