________________
१३६
अनुसन्धान-७१
३. वृत्तिकार भगवन्ते आ पूर्वे "अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो परमाणुओ करतां अनन्तमा भागे छे, तेथी वस्तुतः आनुपूर्वीद्रव्योनां स्थान असङ्ख्य ज छे" अम कडं छे, तेना परथी पण जणाय छे के सम्पूर्ण पुद्गलास्तिकायमां असङ्ख्यातप्रदेशिक स्कन्धोनुं ज बाहुल्य छे. तेथी आनुपूर्वीद्रव्यो करतां तेमना प्रदेशो असङ्ख्यगुण ज नक्की थाय छे. ___ माटे अवक्तव्यकद्रव्यो (जे प्रदेशार्थताओ परमाणुओ करतां देशोन द्विगुण छे तेमना) करतां आनुपूर्वीद्रव्यो प्रदेशार्थताओ असङ्ख्यगुण ज होई शके, अनन्तगुण नहीं. सूत्रमा प्रदेशार्थता अने उभयार्थता - ओ बन्ने अल्पबहुत्वमां जे 'अनन्तगुण' जणाव्युं छे तेमां प्रतिलेखक लहियानी भूल थई हशे अम मानवू योग्य जणाय छे. अने वृत्तिकारोओ ओ प्रामादिक पाठने ज अनुसरीने 'अनन्तगुणत्व' प्रतिपादित कर्यु हशे अम मानवू जोईजे.
टिप्पणकार आचार्यश्रीनी आ प्ररूपणाने पं. श्रीहृदयवल्लभविजयजी मे ग्रन्थनी पोते लखेली प्रस्तावनामां बिरदावी छे. अने टिप्पणकारश्रीना समुदायना अधिपति पूज्य आचार्यश्री विजयजयघोषसूरिजी म.नु पण आ टिप्पणोने समर्थन छे अम टिप्पणकारश्रीओ पोते जणाव्यु छे. आ अंगे तेओना ज शब्दो - "तेओश्रीधे श्रुत प्रत्येनी भक्तिथी अने मारा प्रत्येनी लागणीथी ग्रन्थ, सूक्ष्मतापूर्वक संशोधन कर्यु छे अने रीते टिप्पणोनी उपादेयतामां जबरदस्त वधारो कर्यो छे."
हवे आ टिप्पणो अंगे थोडोक विचार करीओ -
पहेली वात तो ओ के जैनशासननी मान्य प्रणालिका मुजब बधुं ज कांई तर्कथी सिद्ध करवानुं नथी होतुं. बल्के ज्यां तर्कथी सिद्ध जणाती बाबत पण सूत्रकारादि महर्षिओनां वचनोथी अप्रमाणित थती लागे, त्यां ओ महर्षिओनां वचनोने ज स्वयंसिद्ध प्रमाणभूत गणीने पोताना तर्कमां जणातो के नहि जणातो कोई दोष हशे अम समजीने तेने गौण करवानो होय छे.
१. "सूत्रे तु द्वयोरपि स्थानयोरनन्तगुणानीति यद् दृश्यते तत् सूत्रादर्शलेखकस्य कोऽपि प्रमादोऽभूदिति कल्पने श्रेयः प्रतिभाति । तदनुसारेण च वृत्तिकारैरप्यनन्तगुणत्वं प्रतिपादितं भवेदिति मन्तव्यम् ॥" - टिप्पणमां दर्शावायेलो निष्कर्ष. आ सम्पूर्ण टिप्पण माटे जुओ पुस्तकनां पृष्ठ ९२-९४.