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ओक्टोबर-२०१६
दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए सव्वत्थोवाई णेगम-ववहाराणं अवत्तव्वयदव्वाई दव्वट्ठयाए, अणाणुपुव्वीदव्वाइं दव्वट्ठयाए अपएसट्ठयाए विसेसाहियाई, अव तव्वयदव्वाई पएसट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्वीदव्वाइं दव्वट्ठयाए असंखेज्ज गुणाई, ताई चेव पएसट्ठयाए अणंतगुणाई ॥" (सूत्र-११४) ___अत्रे प्रदेशार्थता अने उभयार्थता - ओ बे अल्प-बहुत्वमां अवक्तव्यक द्रव्यो करतां आनुपूर्वीद्रव्योने 'अनन्तगुण' कह्यां छे ते अंगे टिप्पणकारश्री जणावे छे के सङ्ख्याशास्त्र अनुसारे विचार करतां अत्रे वास्तवमा 'असङ्ख्यगुण' होवू जोईओ. तेओओ आ माटे नीचे मुजब दलीलो आपी छे -
१. आ पूर्वे अन्तरद्वारमा (सूत्र-१११) परमाणु स्कन्ध साथे जोडाइने फरी परमाणु बने तेमां उत्कृष्टथी असङ्ख्यकाल वीते तेम जणावायुं छे. आनो मतलब ओ थाय के सम्पूर्ण पुद्गलास्तिकायमां स्कन्ध साथे जोडायेला . जेटला परमाणु छे ते आटला कालमां फरीथी परमाणुरूपे परिणमे ज छे. तेथी सम्पूर्ण पुद्गलास्तिकायनो असङ्ख्यातमो भाग कायम परमाणुरूपे होय ज छे ते स्वीकारवू ज पडे, केम के तो ज असङ्ख्यातकाले सम्पूर्ण पुद्गलास्तिकायनुं परमाणुरूपे परिणमन सम्भवे. आना परथी पण जणाय छे के परमाणु(अनानुपूर्वीद्रव्यो) करतां सम्पूर्ण पुद्गलास्तिकायगत (अने स्कन्धगत पण) प्रदेशो असङ्ख्यगुणा ज छे, अनन्तगुणा नहीं.
२. प्रज्ञापनाजीमां (पद-३, सूत्र-३३०) आवं अल्प-बहुत्व जणावायु छे - "अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो अल्प, तेमना करतां परमाणु अनन्तगुण, तेमना करतां सङ्ख्येयप्रदेशिक स्कन्धो सङ्ख्येयगुण, तेमना करतां असङ्ख्यातप्रदेशिक स्कन्धो असङ्ख्यगुण." आनो मतलब ओ थाय के असङ्ख्यातप्रदेशिक स्कन्धो सम्पूर्ण पुद्गलास्तिकायना असङ्ख्य बहु भाग जेटंला छे. अने तेमना सिवायना परमाणु वगेरे कुल मलीने अक असङ्ख्यात भाग जेटला ज छे. तेथी त्र्यणुकथी मांडीने उत्कृष्ट सङ्ख्येयप्रदेशिक सुधीना स्कन्धो अने अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो अत्यल्प होवाथी गणतरीमां न लईओ तो, आनुपूर्वीद्रव्योमा असङ्ख्यात-प्रदेशिक स्कन्धोनुं ज प्राधान्य होवाथी, आनुपूर्वीद्रव्यो करतां तेमना प्रदेशो असङ्ख्यगुण ज थाय ते स्पष्ट छे.