SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३० अनुसन्धान-७१ अहे सुकि सवि मिली भोलीय, टोलीय मिलिय सुरंग । सीस समारइ बालीय, वेणी जिस्या भुयंग ॥३७॥ एक रचइ सिरि खुप सुणालउ, कुसम चंपक विउल वालउ । रतन खंचित मउड झबूकइ, धडइ लालि मुगताफल लहकइ ॥३८॥ आहे चरचि चंदन केसर, त्रीजलउं मांहि कपूर । करल केश कसतूरीय, पूरीय माग सींदूर ॥३९॥ तिलक एकमुखि वेगे निहालइ, इकिवि पीयलि कज्जल सारइ । इकिवि नारि मुखि बीडा मुंकइ, करणि आभरणि झालि झबुकइ ॥४०॥ आहे कंठि निगोदर वहिकइए, लहिकइए उरवरि हार । सवि पटराणीय तडवडि, गजवडि करइ सिणगार ॥४१॥ इकिवि शेषिइं सींदूरी केवडी, इकवि दाडिम पीत बोरीयावडी । मेघवानि इकि नीली सोहइ, कांचली नवनवी सिरि मोहइ ॥४२॥ अहे पंचवन्न पालव, जेहवी सोहइ शरीरि । एक करइ बहू आदर, जादर पहरइ चीर ॥४३॥ इकवि कंकणि चूडि सोहावइ, इकवि हाथि हथाउलि हलावइ । हेलि गेलि भज बांह लोडावइ, इकवि पीयल पाग मलावइ ॥४४॥ आहे चउसठि सहस अंतेउरी, नेउरी रणझणकार । आहे बिमणी भइ वारांगना, अंगना करइ सिणगार ॥४५॥ इकवि ओढणि आछी चूनरी, नवल भंगि नवरंगी घाटडी । इकवि चउगठि नीली पीयली, सामही सकल सीयल सीयली ॥४६॥ आहे झीलइ एक खडोखली, मोकली नारि रमंति । करी सिणगार अवी वनि, तझ मनि लागी खंति ॥४७॥ सवि सहोदर मात अहमारी, समरु भणइ जे परनारी । रागरहित सिणगार वखाणउं, विषय ते विष समानि हूं जाणूं ॥४८॥
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy