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ओक्टोबर-२०१६
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विष मारइ एक ज वारइए, संसारविष नितु होइ । एह संसार असारडउ, सारत बुझइ कोइ ॥४९॥ स्त्रीय बाल पुरुष पार न लाभइ, सारथी रथ वेगि चलावइ । गज तुरंगम रथ खेलावइ, घंट वाजिव शंख वजावइ ॥५०॥ सांचरीउ आगेवाणि, नीसाणे वलीउ थाय । संघ दहदिसि परवरिउ, तरवरिउ षटखंडि राउ ॥५१॥ इकि चडइ गज उपरि अंबाडी, इकि रहइ रथ सारथि ताडी । इक तुरंगमि चडी आयुध बांधइ, धणुह बाण इक बाली साधइ ॥५२।। एक सुखासणि बइसइ ए, वहिसइ ए कानि कपोल । वालइ सखीय समाणीय, राणीय करइ टकोल ॥५३|| अढार भावि(रि) वन फूल्यां दीसइ, पंथ मारगि मन कामिणि वहिसइ । महिमहइ कुसमवास बहूकइ, रणझणइ भ्रमर कोयलि टहूकइ ॥५४|| अहि संघ चलिउ गहिगहितु, पहूतु षष्टिखंड राउ । वसंतमासि मलीया गरिआ, गरिठाइउ वाउ ॥५५॥ सांचरिउ संघ दीधउं पीयाणउं, तलहटी गिरि गयां विहाणउ । गिरि चडइ अति ऊलट आणी, चैत्र सुदि जन्माष्टमि जाणी ॥५६॥
आहे अष्टापदि चडिउ तरवर, तरवरिउ लोक अपार । नाटक नृत्य महोत्सव, उच्छव जयजयकार ॥५७|| संघवी सयलसंघ बोलावी, कलस कोडि दस वीस भरावी । न्हवणि नीर नदी वहावी, कुसुम चंदनि पूज रचावी ॥५८॥ अहे अगर कपूर ऊखेवइ ए, सेवइ ए प्रभुतणा पाय । एक रहइ सिर नामीय, पामीय तिहुयन राय ||५९॥ चक्कवइ सयल काज सारी, करी महाधन पूजअ वारी । । रत्न कांचन दान दिवारी, ऊतरिउ जिन युगादि जुहारी ॥६०॥