SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओक्टोबर-२०१६ १३१ विष मारइ एक ज वारइए, संसारविष नितु होइ । एह संसार असारडउ, सारत बुझइ कोइ ॥४९॥ स्त्रीय बाल पुरुष पार न लाभइ, सारथी रथ वेगि चलावइ । गज तुरंगम रथ खेलावइ, घंट वाजिव शंख वजावइ ॥५०॥ सांचरीउ आगेवाणि, नीसाणे वलीउ थाय । संघ दहदिसि परवरिउ, तरवरिउ षटखंडि राउ ॥५१॥ इकि चडइ गज उपरि अंबाडी, इकि रहइ रथ सारथि ताडी । इक तुरंगमि चडी आयुध बांधइ, धणुह बाण इक बाली साधइ ॥५२।। एक सुखासणि बइसइ ए, वहिसइ ए कानि कपोल । वालइ सखीय समाणीय, राणीय करइ टकोल ॥५३|| अढार भावि(रि) वन फूल्यां दीसइ, पंथ मारगि मन कामिणि वहिसइ । महिमहइ कुसमवास बहूकइ, रणझणइ भ्रमर कोयलि टहूकइ ॥५४|| अहि संघ चलिउ गहिगहितु, पहूतु षष्टिखंड राउ । वसंतमासि मलीया गरिआ, गरिठाइउ वाउ ॥५५॥ सांचरिउ संघ दीधउं पीयाणउं, तलहटी गिरि गयां विहाणउ । गिरि चडइ अति ऊलट आणी, चैत्र सुदि जन्माष्टमि जाणी ॥५६॥ आहे अष्टापदि चडिउ तरवर, तरवरिउ लोक अपार । नाटक नृत्य महोत्सव, उच्छव जयजयकार ॥५७|| संघवी सयलसंघ बोलावी, कलस कोडि दस वीस भरावी । न्हवणि नीर नदी वहावी, कुसुम चंदनि पूज रचावी ॥५८॥ अहे अगर कपूर ऊखेवइ ए, सेवइ ए प्रभुतणा पाय । एक रहइ सिर नामीय, पामीय तिहुयन राय ||५९॥ चक्कवइ सयल काज सारी, करी महाधन पूजअ वारी । । रत्न कांचन दान दिवारी, ऊतरिउ जिन युगादि जुहारी ॥६०॥
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy