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________________ ओक्टोबर-२०१६ १२५ अष्ठपदतीर्थ-भरतचक्रवर्ती-ऋखिस्तवन - सं. जागृति डी. वोरा आ कृतिमां कवि प्रथम माता सरस्वती- स्मरण करे छे. आदिजिनेश्वरनी अष्टापद पर्वत उपर समवसरणनी रचना थाय छे त्यारे भरत आदिनाथने पूछे छे के तमारा पछी कोण थशे ? त्यारे आदिनाथ कहे छे के अमारा पछी त्रेवीस तीर्थंकर थशे. त्यारे भरत महाराजा तीर्थनी स्थापना करे छे. त्यां सुवर्ण जिनमन्दिरमा चोवीस प्रतिमानी स्थापना करे छे. देव, देवीओ, किन्नरो, विद्याधरो स्वर्गमांथी आवी प्रभुजीने पक्षाल करी आशातना निवारवा पूजा रचे छे. इन्द्रो चामर ढाळे छे. अप्सराओ नृत्य करे छे. क्षेत्रदेवता संगीतवाद्यो द्वारा ओच्छव करे छे. प्रथम चक्रवर्ती, छ खण्ड पर जेनी आण प्रवर्ते छे तेवा भरत चक्रवर्ती सपरिवार, राजा-महाराजाओ, सैन्य साथे प्रथम यात्रा अष्टापदनी करे छे. ८४ लाख हाथी, ८४ लाख घोडा, ८४ लाख रथो, सैनिको साथे संगीतनी सुरावलीओ साथे यात्रा प्रारम्भ करे छे. संघ साथे अष्टापद पर्वतराज चडे छे. चैत्र सुद आठमे प्रभुने न्हवण करावी, केसर चन्दननी पूजा करी, सोना-रत्नोनुं दान करी चैत्य जुहारे छे. आम, आ प्रतमां अष्टापद तीर्थ अने भरत महाराजानी समृद्धिनुं वर्णन करेल छे. प्रतमां कर्ता, रचनासंवत्, लेखनसंवत्, स्थल, गुरुनो उल्लेख नथी. प्रतना शब्दो सुवाच्य, सुन्दर छे. मध्य फुल्लिका पण प्रतमां छे. प्रतनी स्थिति सारी छे. आ प्रतनी झेरोक्ष आ.श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिरमांथी प्राप्त थयेल छे, जेनो क्रमांक ०२८३४६ छे. आ माटे ज्ञानभण्डारना कार्यवाहकोनी हुं आभारी छु. सरसति अमृत वसति मुखि वाणी, नाभिकमल जाणी सहनाणी, आणी हृदय विचारो । सा सारद समरूं सपराणी, जिनशासन सिद्धांत वखाणी, पाली लोकाचारो ॥१॥
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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