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________________ १२६ अनुसन्धान-७१ मधुर मेघ सदा सोहामणउ, वृष्टिता श्रवणकाल बीहामणउ । गयण माधवबार अंधारीइ, मेघनाद सिवराग संभारीइ ॥२॥ अई० मेघमधुर गासुं जिनशासन, चुवीसइ पूर्यां पदमासन, शासन त्रिजग मझारि । अनंत चुवीसी पार न जाणउं, संखेपिइं वर्तमान वखाणू, जाणू गुरु आधारि ॥३॥ सुणीय केवलभाखित वाणी, सगुरु साधसु साध वखाणी । वचनसार विचारी लीधउं, कवित एक विवेकइं कीधुं ॥४॥ अई०. अष्टापद परबत परमेसर, समोसर्या जव आदिजिणेसर, भरथेसर पूछंति । शासनवात कहु मनि जेडउ, होसिइ किसिउ तुम्हारु केडउ, फेडइ मुझ मनि भ्रांति ॥५॥ प्रथमनाथ का आगम आदिसि, अम्ह पछी होसि अनंतर वीस । मातवाति (मानि वानि) प्रमाण स आपी, भरह कीरति तीरथ थापी ॥६॥ अई० अष्टापद संख्या किम गुणीइ, अष्ट योजन गिरि उंचउ सुणीइ, भणीइ सोइ त्रिभुवन्न । दोइ पुहुलउ प्रासाद सविस्तर, च्यार गाऊ लांबु जिनमंदीर, अंबरि उंचउ त्रिणि ॥७॥ स्वेत दोइ मृगवन्न दोइ सामला, सोल कंचण दोइ रत्तूफला । थापी उत्तम तीरथ आदीसि, मानि वानि जिनमूरति चुवीस ||८|| अई० पूरवदिसि दोइ जिणवर जेन, दक्षिण ओलि च्यारि बईठा, दीठा पश्चिमि आठ । उत्तरदिसि दि(द)सिसुं चुवीसइ, आदि अजित अनइं बावीसइ, वीसइ वस्या न घंटो(?) ॥९॥ पांचसई धनुष देह भणीजइ, प्रथमनाथ अनाथ सुणीजइ । अजीतनाथ शत च्यारि पंचासं, च्यारसई जिन संभव साचां ॥१०॥ ईया०
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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