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अनुसन्धान-७१
लेखपछति:
- सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
__ पत्रलेखन एक कला गणाय छे. तेनी शिक्षा परम्पराथी - सदीओथी अपाती आवी छे. अहीं प्रगट थती 'लेखपद्धति' ए एक आवी ज शिक्षा आपती कृति छे. कोणे, कोने, केवी रीते पत्र लखवो, तेनुं शिक्षण आमां आपेलुं छे. ए रीते आ बहु रसप्रद वस्तु छे.
___ पत्र ए मानव-हृदयनी संवेदनाओने अभिव्यक्त करवानू माध्यम छे. बीजां गमे तेटलां साधनो तथा माध्यमो विकसे. परन्तु पत्रलेखनथी जे परितृप्ति मळे छे. अने जेवी अभिव्यक्ति थई शके, ते अन्यत्र के अन्यथा शक्य नथी - नहीं बने.
प्रस्तुत रचनाना कर्ता अज्ञात छे. आवी रचनानी स्थिति लोकगीत जेवी होवानी : तेना कर्ता कोण ते कदी जाणी नहि शकाय; केम के ते लोक द्वारा सार्वत्रिक स्वीकृति पामे छे.
आमां प्रथमतः १८ श्लोकोमा पत्रनो प्रारम्भ केवी रीते करवो तेनाथी मांडीने कया शब्दने के नामने कया लिङ्गमां, विभक्तिमां, वचनमा प्रयोजवो ते वगेरे, शास्त्रीय कहीए तेवी समजण आपी छे. केवो पत्र, केटलां पृष्ठनो, केवी रीते अपायन अपाय, तेनी वात पण आमां थई छे.
पछी कुल २२ प्रकारना पत्रोना मुसद्दा - Drafts अहीं आलेखाया छे. कोण, कोने पत्र लखे तो ते केवी रीते लखे ? तेनुं मार्गदर्शन आमां छे. मूळ श्लोकपाठ जोतां ते कोई ब्राह्मण-रचित कृति लागे, तो २२ पत्रोमां प्रथमना २ पत्र - मुसद्दा जोतां ते बधा कोईक जैन यति के विद्वानना बनावेला लागे छे. ___पत्रोमां अशुद्धि तो होय ज. ते लगभग यथावत् रहेवा दीधी छे. वळी, बोलचालनी भाषामां पत्रो लखाता होई भाषाना शब्दना संस्कृतमां थता तात्कालिक रूपान्तर धरावता प्रयोगो पण घणा जोवा मळशे. एकंदरे विविध अनेक भावोनी अभिव्यक्ति दर्शावता आ पत्रलेखो छे.
वर्षो पूर्वे गायकवाड्ज ओरिएन्टल सीरीझ - वडोदरा तरफथी 'लेखपद्धति' नामक ग्रन्थ प्रगट थयो होवानुं याद आवे छे. तेमां पण प्रायः आ प्रकारना ज श्लोको । लेखो हता.
8. GOS. No. 19. ed. C.D.Dalal and G.K.Shrigondekar 1925.