SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओक्टोबर-२०१६ १०३ अखण्डप्रचण्डदोर्दण्डसाधितसकलक्षितितलपरबलदलनिर्दलनसबल सकल कलाविमल सकलभूपालमौलिमाणिक्यमाला-सकलगुणविराजमान सौभाग्य निधान अखण्डप्रताप अमृतसममधुरालाप पूर्णिमाचन्द्रवदन समुद्रसमगम्भीर षड्दर्शनप्रतिपालक सबलशत्रुभञ्जन दुष्टमुखगञ्जन सकलकलासुन्दर न्यायनीति प्रधान अखण्डपराक्रम सिंहविक्रम विपुलवक्षःस्थल सर्वजनवत्सल गंगजल निर्मल भूपालभालतिलक दुर्द्धरवैरिनिवारक इत्याद्यनेकशुभओपमाविराजमान राजराजेश्वर महाराजाधिराज महाराणा श्री श्री श्री ५ श्री श्री फतहसिंहजी चिरंजीवी धर्मासिस वंचावसि । आप अम्हारे घणी वात छो । आपने देखीसुं, धर्मासिस देइसुं ते दिवसे आणंद पामिसुं । अप्रंच लिखवा कारण ए छई जे - श्रीहजूरनी खुशीनो पत्र नहि, ते लिखावशोजी । खुशीनो पत्र आववाथी आनन्द वरते छे । बीजो नुतरानु समीचार हमारा चोमासी गीतार्थ ऊठे है सो मालुम करावेगा । हमे तो श्रीहजुरना शुभचिंतक छईये तेवी हमारी मर्यादा तेवी श्रीहजुरनी बांधेली छे सो श्रीहजुर निभावसी । हमे तो सदैव ध्यान स्मरणमां माला फेरीये छीये । * * *
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy