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जुलाई-२०१६
बोलइ गुरु तेहसिउं प्रमाण, थापइ सासन सुजाण । उवझाय तीरथ वंदिइ, जय वरी आव्या आणंदई ॥२३९॥
ढाल ॥११॥
दूहा ॥ राग देशाख ॥ श्रीअकबर आलिम-धणी, जूवु अति-दुरवार । अह्म तेथु छइ तेहतj, एह वात निरधार ॥२४०॥ जाएवं अकबर भणी, ए अह्म निश्चइ आज । करि ऊतावलि आवजो, जु तुह्म मिलवा काजि ॥२४१|| लेख लिख्यु गुरु हीरनु, देखी श्रीकल्याण । जई सादडी गुरु वंदिया, कीध ते वचन प्रमाण ॥२४२।।
॥ ढाल ॥
भेट्या रे श्रीगुरुनइं उवज्झाय, ततख्यण हिअडलइ हरख न माय । नेह जिसठ दोइ सायर-चंद, तिम गुरु हीरजी-कल्याण मुणींद ॥२४३॥ सार सीखामण देई विसेस, थाप्या रे उवझाय गुर्जर-देस । श्रीविजयसेनसूरींद सुजाण, धरजो रे तास तणी सिर आण ॥२४४।। मिलीअ भली परई करजो रे काज, जिम वाधइ गछ केरी रे लाज । देई सीख तव कीध पयाण, चालइ रे गछपति मोटइ मंडाण ॥२४५।। पुहता रे सीकरी सयर मझार, मिलीआ रे अकबरनइं गणधार । बयसीनइं गोष्ठि करइ एक ठाम, कहि कुण धरम जु हइ अभिरांम ॥२४६।। बोलइ रे श्रीगुरु मधुरी ए वाणी, बूझो करी सब एकी ज प्राणी ।
खयर महिर ऊपरत न कोई, दिल पाकीवई धरम ज होइ ॥२४७॥ रंज्यु रे नरपति दीइ बहुमान, श्रीगुरु प्रणमी करइ गुण-गान । षटमासी तव दीध अमार, नाम जगत्त्रगुरु अति ऊदार ॥२४८।।