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अनुसन्धान-७०
वीनवइ सोनपाल राय, प्रणमी गुरुतणा पाय ।। भवोदधि-तरिअनई सरिखी, दीख्या मागइ ए हरखी ॥२२७।। आयु-बल जोवइ मुनी-राय, आवइ ऊजेणीअ ठाय । दीख्या अनंशन दीध, नाथुजीइं उछव कीध ॥२२८॥ नव दिन अनशन पालइ, देवतणा सुख भालइ । सोहइ मांडवी मंडाण, कर्यु एकथी(?) पामइ वखाण ॥२२९।। मालवदेसमां विवेक, होवइ लाभ अनेक । नर-नारी गुण गावई, श्रावक भावना भावइ ॥२३०॥ सारंगपुरादिक खेत्र, श्रीगुरु कीध पवित्र । मंडपाचल महादुरग, जाणि अभिनवो स्वरग ॥२३१।। सुगुरु चुमासइए पधारइ, मंडपाचलदुर्ग मजारइ । कुण कुण सामहीयां कहीइ, कहिता पार न लहीइ ॥२३२।। भाइजी-सिंघजी ए जोडी, गंधी तेजपाल मती पोढी । यात्रा करावइ वडवाण, बिंब गज बावन प्रमाण ॥२३३॥ . खांनदेस केरुं ललाम, बरहानपुर पुर सूर-धाम । उवझाय रह्या चुमासिइ, यात्रा तणा फल प्रकासइ ॥२३४|| ततख्यण उठइ धनवंत, बोलइ भानुं सेठ महंत । धु मुझ वांसइए हाथ, संघ लेई आवू हुं साथ ॥२३५।। संघ सजाईई सांचरीओ, जाणई ऊलटीओ ए दरीओ । अंतरीख पास जूहारई, सफल करइ अवतार[इ] ॥२३६।। उवझाय निज-मनि उलसीया, देवगिरि चुमासइ वसीया । पुर पइठाण सुणी वात, जिहां मालातीरथ विख्यात ॥२३७।। चालइ गुरु तीरथ वंदेवा, जाणिं सुभ जस लेवा । जिहां मठ-वासी संन्यासी, जेणि बहू विद्या-अभ्यासी ॥२३८।।