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जुलाई-२०१६
॥ ढाल ॥
श्रीकल्याणविजय ऊवझाय, प्रणमई सुर-नर पाय । सुमति-गुपति-अलंकरीओ, ज्ञानादिक गुणे भरीओ ॥२१५|| अमृत-वाणी वखाण, सुभग-सिरोमणी जाण । आगम-अरथ प्रकासइ, भविअण-मनिं प्रतिभासइ ॥२१६।। लबधि गौतम-तोलइ, जस कीरति सहू बोलइ । जुओ उग्र-तप उग्र-विहारी, तारइ बहू नर-नारी ॥२१७॥ खंभाइत-अमदावादसहिरिं, दीइं उपदेस बहू नयरिं । पाटण नयर प्रसीध, बिब-प्रतिष्ठा ए कीध ॥२१८॥ . पोसह-सामाई-पडिकमणां, तप-जप-उपधान-ऊजमणां । सील-समकित-व्रत दीजइ, लाभ ते अतिघणा लीजइ ॥२१९।। वागड-मालव देस, श्रीपूज्य दीध आदेस । नयर मूंडासइए आदी, जीत्यु विप्रसिउं वाद ॥२२०।। वागडदेसइ सांचरीया, प्रणम्या देव आतरीआ । कीकारटू देसदाणी(?), श्रवणिं सुणी गुरु-वाणी ॥२२१।। श्रीजिनप्रसाद रचावइ, बिब-प्रतिष्ठा ए करावइ । देस जिमाडी रंगरोल, ऊपरि मुदा फरी तंबोल ॥२२२।। अनुक्रमई ऊजेणी पहूता, भागा सवे कुमती अछूता । पूरव पंथ अजूवालइ, कुमत पड्या बहू वालइ ॥२२३।। कीध उ[जेणी चुमास, पूरइ सवे संघतणी आस । मगसी यात्राइ संचलीया, संघ बहू देसना मिलीया ॥२२४|| धनइं करी धनद-समान, राय सोनपाल बहू-ज्ञान । वित वावइ सुभ-टाणइ, पूजइ गुरु सोव्रण-नाणइं ॥२२५।। करइ वली संघ-वाछल्ल्य, काढइ दुरितनां सल्ल्य । जलेबीइं त्रण जमणवार, जिमइ बार बार मानव हजार ॥२२६।।