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अनुसन्धान-७०
वाजई पंच-सबद नफेरी, वाजइ बहू भूगल-भेरी । वाजइ मादल-सुरवीणा, गावति गुण गंध्रव लीणा ॥२०४।। बंदीजन कीरति बोलइ. नही को ठाकरसी-तोलइ ।' रूपई करी मयण-समान, देतु मणि-सोव्रण-दान ॥२०५।। 'जय जय' जंपति जन-वृंदा, 'चिर जीव तुं हर्षा-नंदा' । ससि-वयणी सुंदरी सरिखी, दीइ धवल-मंगल मनि हरखी ॥२०६।। धिन पुंजी रयण-सुत जायु, रंगई मणि-मोती वधायु । संवत सोल-सोल वैशाखी, वदि त्रीज दिवसि सहू सखी ॥२०७।। आवी सवे परिजन साथई, लीइ चारित्र हीरजी-हाथई । रूहूं कल्याणविजय नाम दीध, सही सकल मनोरथ सीध ॥२०८।। सहू लोकतणा वृंद जोवइ, सवे सजन नयण भरी रोवइ । आसीस दीइ वडी-आई, चिर पाले चरण सुख-दाई ॥२०९।। सुभ-ज्ञान-गजि तव चडीओ, सील-सबल-सनाह-दृढ-द्रढीओ । सुभ-ध्यान-खडग कर कीधु, संवेग-खेटक वर लीधु ॥२१०॥ गुरु-आण धरइ सिर-टोप, जीपइं क्रूर करम सकोप । . विचरइ गुरुहीर समीपई, जय जंपति पाप न छीपइ ॥२११।।
इति दीक्षानी ढाल ॥१०॥
दूहा ॥ राग मारुणी ॥ जुगतिं जोग वही सवे, कल्याणविजय मन-रंगि । दिन थोडइ बुद्धइं करी, भणीआं अंग-उपांग ॥२१२।। लक्षण-वेद-पुराण-मुखि, तर्क-छंद-सुविचार । चिंतामणि-प्रमुखा सवे, ग्रंथ भण्या तेणि वार ॥२१३|| संवत सोल चुवीसए, फागुण वदि थिर कीध । सातमि पाटण नयरमां, वाचक-पद गुरु दीध ॥२१४।।