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________________ अनुसन्धान-७० जिम तरूअर केरी डाला, आवी बइसइ पंखि वीआला । ऊगमते ऊठी पलाइ, कोण जाणिइ कवण दिसिं जाइ ॥१४०॥ तिम स्वजन-कुटंब घरि मिलीया, पंच दिवस एकठा मिलीया । जुजूआ सहू ऊठी जासइ, माझं माझं मूढ प्रकासइ ॥१४१।। विहडइ पुत्र-कलत्र-धन-भाई, विहडइ नहीं धरम-सगाइ । मोह-माया-ममता छांडु, प्रीति अवहिड धरमसिउं मांडउं ॥१४२॥ विषया इंद्र-जाल-समाणा, इंम बोलइ सिद्धांत पुराणा । खिणि आवइ नई खिणि जाइ, कहु तास कवण पतीजाइ ॥१४३।। सरवारथसिद्ध-निवासी, अहमेंद्र-आउ खय जासी । जुउ सागर तेत्रीस झिझइ, बीजा नर कुण वात कहीजइ ॥१४४|| . मानव-भव पामी सारो, देस आरजि-कुलिं अवतारो । छांडो मिथ्या-मति कूडी, करो तत्त्वतणी मति रूडी ॥१४५।। त्रण तत्त्व जिणेसर भाषइ, देव-गुरु-धरम सुध दाखइ । एक एक तणा भेद जाणु, दोइ-तीन-च्यारि मनि आणो ॥१४६।। अरिहंत-सिद्ध-गुण गाउ, देव-तत्त्व दोइ भेद ध्यावु । सूरी-उवझाय-सुसाहू, गुरु-तत्त्व-भेद त्रण आहू ॥१४७।। दंसण-नाण-चरित-तप कहीइ, च्यार-भेदे धरम-तत्त्व लहीइ । ए नव-पद सासनिइं सार, सर्वे धर्म-रहस्य अवतार ॥१४८॥ जिनवर दोइ पंथ प्रकासई, भविअण-चित्त-अंतर वासइ । पहिलु शुद्ध-श्रमण-पंथ भणीइ, बीजु श्रावक-मारग सुणीइ ॥१४९॥ मोह-पंक माहिं जे खूता, सही ते नर घणूं विगूता । सुध ज्ञान-दृष्टि ऊघाडउ, करु धरम-सखाई गाढउ ॥१५०॥ मणि-रयण-सोवन पावडीआं, स्तंभ सहस सोवनमइ घडिआं । जो करइ जिन-घर बहूरि को, तेहथी तप-संयम अधिको ॥१५१।।
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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