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पाडुंर (पाडउ ?) पोलि प्रकार प्रौढ, वापी आराम । निर्मल- नीर नदी वहइ, सरोवर अभिराम ॥ २५ ॥
वर - नर-रत्नइं अलंकरी, नगरी अति ओपर | पोढां जिन - मन्दिर - मालीयां, तुंग-सिखरि विलोपइ ||२६||
ठामि ठामि जिनवरतणा, ऊत्तंग प्रासाद ।
पौषध - शाला विचित्र - शाल, करइ गयणसिउं वाद ||२७||
धर्मवंत धनई आगला, श्रावक सुविचार | जिनवर - आण वहइ सदा, सुध - समकित - धार ||२८|| निखिल नगरि वसि - नारि होइ, मानव - मोह - कारी । देहिं भगवती भारती, गेहिं कमला सारी ॥२९॥ साधु - विहार सुगम जिहां, वसई बहु धनवंत । भद्रक पापभिरू सदा, लोक सहू सुखवंत ||३०|| गुरु-गुण सुणीइ एक- चिंति, मूकी अभिमान । जय जंपई भावई करी, दीजइ बहू दान ||३१|| देवगुरुनमस्कार - नगरवर्णनानी ढाल ॥
अनुसन्धान- ७०
हा ॥ राग सामेरी ॥
'कल्याण' 'कल्याण' जे को जपइ, तस घरि होइ कल्याण । कमला नित कीला करइ, जय जंपइ किल जाण ||३२||
दीपक गृह - भीतर रह्यु, करइ सवे वस्तु - वि (प्र) काश । पुत्र - दीपक अभिनव जूओ, करइ निज-वंश - प्र (वि) काश ॥३३॥ श्रीकल्याणविजय वाचक5- विभु, समता - सरिवर-हंस | अहनिशि झील रंग - भरि, करइ निज निर्मल वंस ||३४||