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जुलाई-२०१६
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॥ ढाल ॥ श्रीकल्याणविजय गुरू, जाणई जंगम सुरतरू,
सुरतरू, फलीओ मुझ घरि आंगण ए । तास तणा परीआ भणूं, निज अवतार सफल गणूं,
सफल गणूं, नाम लेई तेहणा ए ॥३५॥ परिआ एकवीस पूरवई अछइ, संघवी आजड हूओ तेह पछइ,
तेह पछइ, पुण्यतणु ते आगरु ए । सुकृत करइ निज हाथई ए, संबल लीइ निज साथई ए,
[साथई ए], हूओ बहु-सुख-सागरो ए ॥३६॥ तेह तणुं सुत गुणवंत ए, संघवी झींपु रमा-कंत ए,
कंत ए, करइ भगति देव-गुरुतणी ए । तास पुत्र दोइ गुणनिला, राजसि-मांईंउ अतिभला,
. अतिभला, जस कीरति जगमा घणी ए ॥३७॥ राजसी अति ऊदार ए, जेणि लहिण करी धाणधार* ए,
धाणधार ए, थाली मोदक घरि घरई ए । राजसी-सुत थिरपाल ए, उठ्यु दुरिततणु काल ए,
काल ए, टालइ दुरितनइं परिपरि ए ॥३८॥ एणिं अवसरि हूओ नरपति, साहि महिमूद गूजरपति,
गूजरपति, थिरपाल वेगि तेडावीयो ए । जई मिलीयो सुलतान ए, थिरपाल दीध बहूमान ए,
. बहूमान ए, रायतणई मनि भावियो ए ॥३९॥ हरख्यु निज मनि राय ए, लालपुर दीध पसाय ए, .
पसाय ए, लेई थिरपाल आविउ जवइ ए । लालपुर कीओ निवास 'ए, निज लछि करइ विलास ए,
विलास ए, दोगदिक सुर सुख अनुभवि ए ॥४०॥
★ थाणथार - जैन ऐतिहासिक रासमाला ।