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________________ अनुसन्धान-७० दूहा ॥ राग देशाख ॥ सकल-सिद्धि-वर-दायको, स जयु रिखभ जिणंद । भारत-संभव-भविअ-जण-बोहण-कमल-दिणंद ॥१॥ शांति जिनेसर मनिं धरुं, शिव-कर त्रिजग-मझारि । सिद्धि-वधू वरवा भणी, वरीओ संज्यम-भार ॥२॥ राज-लछि सवे परिहरी, जीती मोह-गइंद । मुगति-रमणि-पाणिं ग्रही, नमुं ते नेमि-जिणंद ॥३॥ दुष्ट अरिष्ट हरइ सदा, करइ ते मंगल-कोडि । पास जिणेसर प्रणमसिउं, अहनिशि बइ कर जोडि ||४|| पेखि पराक्रम जेह, मृग-पति साहस-धीर । लंछन-मिसि सेवा करइ, सोइ समरु महावीर ।।५।। पंचे तीरथ जे कह्यां, जस महिमा अभिरांम । कर जोडीनई नित नमूं, जिम हुइ चिंतित काम ॥६।। अजितादिक जे जिनवरा, जित-मछर सवि जाण । ते सवि मुझ विघनां हरु, प्रणमुं केवल-नाणि ||७|| गौतम गणधर पाय नमं, तप-जप-लबधि-भंडार । रिद्धि-वृद्धि-सुख संपजइ, जस नामइ जयकार ||८|| निज-गुरु-चरण नमुं मुदा, जिम होइ वांछित-सिद्धि । करी प्रसाद मुझ ऊपरिं, ज्ञान-दृष्टि जिणिं दीध ॥९॥ ॥ देशाखनी चाल ॥ ज्ञानदृष्टि मुझ दीध जेणि, प्रणमी गुरु-राय । सरसति-सामिनी वीनवू, वर दिउ मुझ माय ॥१०|| ताहरा रूप समान रूप, कुण रूप कहीजइ ।। सयल-मनोरथ-पूरणी, कुण ओपम दीजइ ॥११॥
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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