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अनुसन्धान-७०
पण्डित-श्रीजयविजयजी-रचित वाचक-श्रीकल्याणविजयज़ी-रास
- सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
उपाध्याय श्रीकल्याणविजयजी ! महोपाध्याय श्रीयशोविजयजीना उपासको माटे अतिपरिचित नाम. "हीरगुरु सीस-अवतंस मोटो हूओ वाचकाराज कल्याणविजयो" जेवी, महोपाध्यायजीना ग्रन्थगत प्रशस्तिओनी पंक्तिओना आधारे तेओना प्रदादागुरु तरीके सुप्रसिद्ध महापुरुष.
महोपाध्यायजीनी गुरुपरम्परा आम छे - जगद्गुरु श्रीविजयहीरसूरिजी - उपाध्याय श्रीकल्याणविजयजी - शब्दानुशासनना समर्थ विद्वान पं. श्रीलाभविजयजी - पं. श्रीनयविजयजी - उपाध्याय श्रीयशोविजयजी. आम महोपाध्यायजीने जन्मावनारी गुरुपरम्पराना ओक समर्थ महात्मानुं जीवनगान मळे तो ते महोपाध्यायजीना आराधको माटे ओच्छव ज गणाय !
उपाध्याय श्रीकल्याणविजयजीनी प्रतिभा अने पुण्यप्रकर्षनां दर्शन आ रासमां अनेक ठेकाणे थाय ज छे. तो पण आ व्यक्तित्व माटे बलात् अहोभाव जन्मावे तेवी बे-त्रण विशेष वातो नोंधवी जोईओ : १. तेओनी दीक्षा सं. १६१६मा १५ वर्षनी वये थई. त्यारबाद तेओओ करेली संयमसाधनानो चितार आ रासमां के अन्यत्र क्यांय मळतो. नथी. पण आ साधनाना परिपाकरूपे सं. १६२४मां पाटणमां फक्त ८ ज वर्षना दीक्षापर्यायमां अने २३ वर्षनी नानी उमरे स्वयं जगद्गुरुओ तेमने उपाध्यायपदथी विभूषित कर्या हता ! जगद्गुरुना पदप्रदान माटेनी योग्यता अंगेना मापदण्डो केटली उच्च कक्षाना हता अने ओ माटे तेओ केटली आकरी तावणी करता हता ते सुज्ञ जनोने जणाववानी जरूर न होय. अने तेम छतां श्रीकल्याणविजयजी आ सिद्धि मेळवी शक्या तेमां तेओनी प्रतिभा, शासननिष्ठा, पुण्यशालिता, आराधकता जेवा अद्भुत गुणो ज़ आपोआप जणाई आवे छे..
२. जगद्गुरुना विशाळ शिष्य-प्रशिष्य परिवारमा अनेक अनेक बहुमूल्य रत्नो समायेला हतां. आ साधुपुरुषो वच्चे सरखामणी तो जाणे न ज कराय - न ज करवी जोईओ. तेम छतां जैतिहासिक घटनाओ अने अनेक प्रसंगो तपासतां उपाध्याय श्रीकल्याणविजयजी, स्थान ओ समग्र परिवारमा बहु मोभादार जणाय छे. ओमना जीवनकाळ दरम्यान ज रचायेलो आ रास तो अनो बोलतो पुरावो छे ज, पण दिल्ही