________________
जुलाई-२०१६
आम आ तमाम रचनाओ दुहाना चोक्कस मापने अधीन चाले छे, सरल अने प्रासादिक भाषा-शैलीमां ग्रथित छे, अने भावप्रवण तथा भक्तिसभर रचनाओ छे.
तेना कर्ता तपगच्छपति हीरविजयसूरिशिष्य वाचक विमलहर्ष गणिना शिष्य अने रत्नहर्षगणिना भ्राता मुनि प्रेमविजयजी छे. सत्तरमी सदीना उत्तरार्धमां थयेला आ साधु-कविनी केटलीक गुर्जर रचनाओ विषे 'गुजराती साहित्यकोश (मध्यकाल)' (पृ. २५८)मां नोंध छे. जो के अत्रे प्रगट थती रचनाओ विषे तेमां प्रायः नोंध नथी जणाइ. पूर्वे 'अनुसन्धान-६ तथा ७'मां 'मुनि प्रेमविजयनी टीप' नामे कृति तथा एक शिलालेख वगेरे द्वारा आ कवि विषे घणी विगतो प्रकाशित थई छे, जेना आधारे कवि एक अत्यन्त धर्मपरायण, चारित्रना कठोर पालक अने शत्रुञ्जयतीर्थना प्रखर आराधक साधु होवानुं प्रतीत थाय छे..
आ नकलना छेडे "श्रीविशाश्रीमाळी तपगच्छ जैन पाठशाळानो हस्तलिखित संग्रह" एम सम्पादके लखेल छे. गामनुं नाम नथी. सम्भवत: जामनगर होय.
आर्छ स्मरण छे के आ रचनाओ अगाऊ 'कल्याण'(वढवाण)नामक जैन मासिक पत्रमा प्रकाशित थई होय. परन्तु तेनुं आ स्थाने आ रीते प्रगट थर्बु वधु उचित अने मूल्यवान गणाशे तेवी प्रतीतिथी ओ अहीं प्रकाशित थाय छे.