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________________ जुलाई-२०१६ अक कोडि नइ पांच लाख, वली सहिस अडतीस । धर्मइं राति श्राविका, जग बहु जगीस ॥ त्रूटक - अ चउवीसइ जिनतणउ , मई कहिउं परिवार । भाव धरी तस गुण थुणउ, जिम पामुं भवपार ॥१६॥ चउरासी गच्छ माहिं सार, श्रीतपगच्छ दीपइ । जिंहा हीरजी गुरुराजीउ, तेजइ त्रिभुवन जीपइ ॥ तस पाटि सोहि सुरवीर, विजयसेन गुणधारी । . कोडानंदन चिरंजउ, जगनइ हितकारी ॥ श्रीविमलहर्षवाचकतणु सीस कहि उलास । । गणिरत्नहर्ष वंदु प्रेमनइ, आपउ सिवपुरवास ॥ ॥ इति श्रीनमस्कार संपूर्ण ॥ श्रीविशाश्रीमाळी तपगच्छ जैन पाठशाळानो हस्तलिखितसंग्रह पोथी१०२, प्रत-७९३ श्रीनमस्कारसंग्रह पत्र-६ उतारी - २०२३, वै.शु.१२ मुनि श्रीप्रेमविजयजी कृत केटलीक . गुर्जर लघु रचनाओ विषे - विजयशीलचन्द्रसूरि कविमित्र मुनि धुरन्धरविजयजीए पुराणां पानां फेंदी पेंदीने अनेक अद्भुत अने ऐतिहासिक एवी रचनाओ प्रकाशमां आणी छे. तेमनी दृष्टि एवी तो पारदर्शी छे के हजारो पानां के प्रतोनी वच्चे क्यांक अटवायेली, कोईने झट जडे नहि तेवी, विशिष्ट के नवतर रचना के प्रत ज तेमना हाथमां आवे ! तेमणे वर्षों पूर्वे आम पुराणां पानां जोतां जडेली केटलीक कृतिओ पोतानी नोंधपोथीमां उतारी लीधेली. तेनी जेरोक्स तेमणे प्रकाशन अर्थे आपी राखेली, तेमांथी केटलीक रचना अत्रे प्रगट करवामां आवे छे.
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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