________________
५८
अनुसन्धान-७०
हिवइ विहरमान भवियण सुणउं, जे कहिई वीस । भाव धरी तस पूज करउ, टाली सवि रीस ॥ सीमंधर युगमंधर देव, बाहु सुबाहु वीरे ।
श्रीसुजात नइ सयंप्रभ, जग मोटा धीर । त्रूटक - ऋषभानन सोहामणउ अ, अनंतवीर्य अभिराम । .
सूरप्रभ सूरउ सही, विशाल वज्रधर नाम ॥४॥ चंद्राननइ चंद्रबाहु, वली श्रीयभोजंग । ईश्वर नेम प्रभु सही, गुण गाउं रंग ॥ वीरसेनइ महाभद्र, गुणरयणनिधान ।।
देवजस नइ अनंतवीर्य, वाधइ जस वान ॥ त्रूटक - जयवंता जग विचरता से, विहरमान जिन वीस ।
श्रीविमलहर्षवाचक तणउ, इम प्रेमविजय कहइ सीस ॥५॥ श्रीशेजउ सिद्धक्षेत्र, सु दुर्गतिदुःख वारइ । भाव धरीनइ चड(इ) जेह, तेहनइ पार उतारइ । । रैवतगिरि श्रीनेमिनाथ, जे बालब्रह्मचारी ।
सतीसिरोमणी राजमति, तजी जेणइ नारी ।। त्रूटक - अरबदगिरि रुलीआमणु अ, जिहां जिनबिंबतणुं नहि पार ।
आदि-नेमि भावइ करी, पूजा करु नरनारि ॥६॥ वीसइ जिनवर समेतशिखर, आविनइ सीधा । कर्मरासि सहु दूर करी, सुख मुगतिना लीधा ।। अष्टापदगिरि अष्ट जोज(न), उंचउ अति कहिइ ।
सा सोवर्णम(इ) जिनभवन, तिहां कण लहिइ ।। त्रूटक - मान प्रमाण रयणमइ अ, मूरति जिन चउवीस ।
भरहराय भावइ करी, हुं प्रणमुं ते निसदीस ॥७॥