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जुलाई - २०१६
(४) नमस्कार - - संग्रह
सरसतिमाता सुणउ देव, द्यउ अवि (म) ल वाणी । चवीसइ जिन गाइशुं, अंगि उलट आणी ॥ पहिलु ऋषभजिणंद देव, सूर सेवा सारइ । बीजु अजितजिणंद नाथ, भवपार उतारइ ।। त्रूटक - संभव त्रीजु सोहामणु ओ, अभिनंदनजिन देव । सुमति पद्मप्रभु सुपासजिन, चंद्रप्रभ करूं सेव ॥१॥ सुविधि शीतल श्रेयांस, वासुपूज्य गुण गाउं । विमल अनंत धर्मनाथ, सेवई सुख पाउं ॥ शांतीकरण श्रीशांति कुंथु, जिनवर अरिनाथ । मल्लिनाथ मुनिसुव्रत, सिवपूरनो साथ ॥
त्रूटक
तपगच्छनायक गुणनिलउ, हीरजी गुरुराय । मनमोहन विजयसेनसूरि, वंदुं तस पाय ॥ श्रीविमलहर्षसिष्य इम भणइ अ, प्रेमविजय कह देव । भव-भवि सेतुंजगिरि-तणी, मुजनइ देज्यो सेव ॥५॥
॥ इति श्रीसेतुंजनमस्कार समाप्त ॥
टक
नमि- नेम जग जाणीइ अ, जायवकुल सणगार । पशुबंध छोडी करी, चडीउ गढ गरिनार ॥२॥ . पुरुषादानी पासजी, नउकार ज दीधउ । पन्नगनइ सुरपदवी देइ, धरणेंद्र ज कीधउ ॥ चरणे मेरु कंपावीउ, श्रीवीरजिणंद | सकल सुरासुर - इंद्र-चंद्र, गुण गाई आणंद || ओ चउवीसइं जिनवरुं अ, हुं प्रणमुं नसदीस । भाव धरी तस पायकमल, भगति नामुं सीस ||३||
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