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________________ ५४ अनुसन्धान-७० . मृगपति नइ मृग अक ठामि, बिहु जमला बइठा । नाग-मोर माजार-हंस, सुखस्युं ते दीठा । वाघ-वृषभ नइ ससा-स्वीन, हेजइ ते हरखइ । जाति-वैर उपसांत होइ, जिनवर-मुख निरखइ ॥ त्रूटक - सुर-नर-किंनर-असुर-नर-विद्याधरनी कोडि । . मन-वचन-तनु भावसुं, पाय प्रणमइ कर जोडी ॥४॥ त्रिभुवनतारण देव तुहि, मन जाणइ एक । रसना त्रिपति लहइ सदा, गुण गाय वशेष ॥ . तुम्ह गुण श्रवणे सांभळी, सुखस्याता थाइ । रोम-रोम आणंद घj, अंगइ नवि माय ॥ त्रूटक - आंखि करि उम्हाहलुं ए, तुम्ह मुख जोवा देव । श्रीविमलहर्षशिष्य प्रेमनइ, देजो तुम्ह पद सेव ॥५॥ (२) पंचतीर्थ-नमस्कार श्रीसेजेजउ सिद्धक्षेत्र, दुर्गति-दुख वारइ । भाव धरीनइ चडइ जेह, भव-पार उतारइ ॥ अनंत सिद्धनउ ठाम, सकल तीरथनउ राय । पूरव नवाणु ऋषभदेव, ठविया तिहां पाय ॥ त्रूटक - सूरजकुंड सोहामणु ए, कवडजक्ख अभिराम । नाभिराय कुलमंडणु, जिनवर करु प्रणाम ॥१॥ प्रथम तीर्थ कीय चक्कवइ, भरहेसर जाण । चउवीसइ जिनतणा, बिंब तिहां मान प्रमाण || आठ जोजन गिरि उंच-पणइ पामइ उजल । जोयण जोयण पावडी मान, सगर सुत कीध निर्मल ॥ २. जोडे । ३. तृप्ति । ४. उमळको ।
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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