SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जुलाई-२०१६ ५३ मुनिश्री प्रेमविजयजी कृत केटलीक शुर्जर लघु रचनाओ - सं. मुनि धुरन्धरविजय (१) सीमन्धर-जिन-नमस्कार सुमति सदा दउ सारदा, प्रणमत करेइ । . विहरमान-जिन-गुण-स्तव, मनि भाव धरेइ ।। पूरवविदेह-नगरि नाम, पुंडरिगरि जाणी । . राज्य करइ श्रीअंस राय, सतकी तस राणी ॥ त्रूटक - तस घरि आवी अवतरा अ, त्रिभुवन-तारणहार । जन्म्या जिनवर जगत्रगुरु, सुर करइ जयजयकार ॥१॥ धनुष पांच सत मान कहुं, सोवनमइ काया । अति सुंदर रुषमिणिय नारी, कुंवर परणाया । वीस लाख पूर्व लगइ, बालकनी लीला । त्रिसठि पूर्वे राज रुद्धि, भगति सुखशीला ।। त्रूटक - अर्थ-भंडार अंतेउरी मे, हयगय-रथ-परिवार । ममता-मोह तजी करी, लीधु संयमभार ॥२॥ अनुक्रमि अवनि विचरतां, लहइ केवलनाण । समोसरण सोभा घणी, सुर करइ मंडाण || वाणी वचन-विलास आदि, अतिशय चउतीसइ । भवीय जीव प्रतिबोध लहइ, दरसण जगदीस ।। जूटक - प्रखर्दा बारइ बुझवइए, चिहुं मुख करइ वखाण । शुभध्यानइ सहु सांभलइ, निज निज भाषा जाण ॥३॥ १. पर्षदा ।
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy