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जुलाई-२०१६
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मुनिश्री प्रेमविजयजी कृत केटलीक शुर्जर लघु रचनाओ
- सं. मुनि धुरन्धरविजय
(१) सीमन्धर-जिन-नमस्कार
सुमति सदा दउ सारदा, प्रणमत करेइ । . विहरमान-जिन-गुण-स्तव, मनि भाव धरेइ ।। पूरवविदेह-नगरि नाम, पुंडरिगरि जाणी । .
राज्य करइ श्रीअंस राय, सतकी तस राणी ॥ त्रूटक - तस घरि आवी अवतरा अ, त्रिभुवन-तारणहार ।
जन्म्या जिनवर जगत्रगुरु, सुर करइ जयजयकार ॥१॥ धनुष पांच सत मान कहुं, सोवनमइ काया । अति सुंदर रुषमिणिय नारी, कुंवर परणाया । वीस लाख पूर्व लगइ, बालकनी लीला ।
त्रिसठि पूर्वे राज रुद्धि, भगति सुखशीला ।। त्रूटक - अर्थ-भंडार अंतेउरी मे, हयगय-रथ-परिवार ।
ममता-मोह तजी करी, लीधु संयमभार ॥२॥ अनुक्रमि अवनि विचरतां, लहइ केवलनाण । समोसरण सोभा घणी, सुर करइ मंडाण || वाणी वचन-विलास आदि, अतिशय चउतीसइ ।
भवीय जीव प्रतिबोध लहइ, दरसण जगदीस ।। जूटक - प्रखर्दा बारइ बुझवइए, चिहुं मुख करइ वखाण ।
शुभध्यानइ सहु सांभलइ, निज निज भाषा जाण ॥३॥ १. पर्षदा ।