________________
४२
अनुसन्धान-७०
जूनो ! 'ठल्लत्वं' - निर्धनपणुं, आपणे 'ठालो' (नकामो, खाली) प्रयोग करीए तेनुं मूळ अहीं जडे. ठींठत्व ठींठापणुं - ए पण समजायो नथी, पण 'ठाला' जेवो ज लागे छे.
२५-२६मां डुंगरोच्चता- 'डुंगर'ने (देश्य शब्द छे) अहीं संस्कृत बनाववामां आव्यो छे, ते मजानुं छे. 'डयनत्वं' आ शब्द उड्डयनवाचक 'डी' धातुथी बनेलो छे, तेना ३ अर्थ मार्मिक छे. तो 'डयनावाप्तिः - पालथीनी प्राप्ति' ए कांईक नवी ज अर्थछाया छे. पालथी एटले पलांठी एम समजीए तो नवा ज शब्द अर्थ सांपडे छे. ‘डोल्लत्करत्व' संयोजित शब्द छे. हाथ धूजे कम्पवा होंय तो ते घडपणनी स्थिति छे, एटले अर्थ आप्यो - जराजीर्णत्वं. डिंगरत्व- हांसी ए नवो शब्द मळे छे : कोशमां नथी. डक्क-डाक आनो मतलब पकडातो नथी. कोशमां 'डक्क' - सर्प द्वारा डसायेल, दन्तगृहीत, वाद्यविशेष एम त्रण अर्थ मळे छे. पण आ. 'डाकपुत्रापणं' साथे ते एकेय बेसतो नथी. डाकुनो, पुत्र एम थई शके के केम ? २७-२८मां 'ढींचता-ढींचालपणुं' छे, ते नवो ज
शब्द छे : कोशमां नथी. 'ढांढर्यं - सुंना ढंढारपणं'
'ढींचवुं - ढींचनारो-ढींचीने आव्यो' ए अर्थमां आ हशे ?
आ पण एवो ज शब्द छे, अर्थ न मळे, न समजाय. 'ढीमणं' कोशमां नथी, पण अर्थरूपे मूकेल रूढिप्रयोग 'देह त्यां ढीमणां' ए स्पष्ट बतावे छे के पडी जतां कपाळे के अन्यत्र ढीमचुं थाय ते अर्थवाचक से शब्द छे. ढीमणुं - ढीमकुंढीमचुं वगेरे. 'ढिक्का - ढींक' स्पष्ट छे. कोईने ढींक मारवामां आ शब्द काम लागी शके. 'ढौढल्लं' कोशमां नथी, तेनो अर्थ 'ढोढलापणुं' नथी समजातो. 'दोदलापणुं ' होय ? ‘ढरढिल्लिता' ‘ढौमण्यं' शुद्धपणे देश्य छे, कोशमां नथी जडता.
-
-
-
२९-३०मां बधा ज शब्दो देशी छे, एम कर्ता ज जणावी दे छे. कृतिनो सघन अभ्यास करतां आवां स्थानो, आवा शब्द- अर्थ घणा जडे, ते रसप्रद पण बने ज.
आवी मजेदार कृतिना कर्ता, ६९मा श्लोकमां जणाव्या प्रमाणे, लक्ष्मीकल्लोल नामे विद्वान् जैन मुनि छे. इतिहासना सन्दर्भो तपासतां तेमना विषे मळती अल्प जाणकारी आ प्रमाणे छे : तेमनो सत्ताकाळ सोळमो सैको छे. प्रा. ही. र. कापडियाना जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास खण्ड - १ (पृ. १५७, नवी आवृत्ति ) मां निर्दिष्ट 'सूक्तसंग्रह' ते आ ज कृति छे. ते तपगच्छना हर्षकल्लोलना शिष्य छे. तेमणे आचाराङ्ग अने ज्ञाताधर्मकथा जेवा आगमो पर वृत्ति / अवचूरि बनावी छे.
आ कृतिनी एक प्रति कोडाय (कच्छ)ना सदागम प्रवृत्ति - ज्ञानभण्डारमां छे. तेनी जेरोक्स नकल उपाध्याय श्री भुवनचन्द्रजीना सहकार थकी मळी छे, तेना आधारे आ सम्पादन थयुं छे. प्रतिनी नकल मोकलवा बदल ते सहुनो आभारी छु.
ာ