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________________ जुलाई-२०१६ १३७ ९. प्रभाकर सम्मत विवेकाख्याति पूर्वोक्त सत्ख्याति, अलौकिकख्याति आदि के समर्थक आचार्यों के मत से परमार्थतः कोई भी ज्ञान अयथार्थ न होने पर भी, व्यावहारिक जगत् में भ्रान्तज्ञान का अस्तित्व तो स्वीकृत ही है । जब कि मीमांसक प्रभाकर को तो व्यावहारिक स्तर पर भी भ्रान्तज्ञान का अस्तित्व मान्य नहीं । उसके , मत में तो ज्ञानमात्र व्यवहार में भी यथार्थ ही होता है। ___मीमांसकों के एक पक्ष ने जो अलौकिकख्याति का मार्ग निकाला था, वह दोषबहुल होने से प्रभाकर को स्वीकार्य न था । तो वृद्ध मीमांसकों द्वारा स्वीकृत अन्यथाख्याति भी प्रभाकर को सम्मत न थी । उसका तर्क था कि यदि कोई ज्ञान अयथार्थ भी हो तो मीमांसकों का मुख्य सिद्धान्त स्वतःप्रामाण्य घट नहीं सकता । क्यों कि तब तो यथार्थ ज्ञान में भी सहज शङ्का का अवकाश रहेगा कि यह ज्ञान अयथार्थ तो नहीं ? । उक्त शङ्का को दूर करके यथार्थ ज्ञान को अबाधित सिद्ध करने के लिए संवाद आदि से बाधकाभाव का निश्चय आवश्यक हो जाता है । और तब तो उक्त निश्चय के सापेक्ष ही प्रामाण्यनिश्चय होने से, परतः प्रामाण्य सिद्ध होगा, न कि स्वतः । इस तरह यदि अन्यथाख्याति का स्वीकार करना है तो स्वतः प्रामाण्य-ज्ञप्ति को बर्खास्तगी ही देनी होगी । विपरीतख्याति के विरुद्ध प्रभाकर ने दूसरा तर्क यह दिया कि यदि अन्यदेशस्थ रजत का शुक्तिदेश में भान हो जाय तो शुक्तिदेश में शशशृङ्गादि अत्यन्त असत् का भी भान क्यों न हो ? । क्यों कि भ्रमस्थलीय विवक्षित देश में, अन्यत्र सत् और अत्यन्तासत् - दोनों का असत्त्व समान ही है । तब तो असत्ख्याति यानी शून्यवाद को ही अवलम्बन देना होगा । उक्त दोषों से बचने के लिए यदि भ्रमज्ञान के विषयभूत पदार्थ को सत् मान लिया जाय तो सत्ख्याति यानी सर्वत्र सर्व की सत्ता स्वीकारनी होगी, जो कतई सम्भवित नहीं । अतः प्रभाकर ने भ्रमोत्पत्ति का एक नया
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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