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________________ ११६ अनुसन्धान-७० भी उपलब्ध होती हैं । यद्यपि इनको किसने किससे लिया है यह विषय विवादास्पद ही रहा है । यदि हम कुन्दकुन्द को ईस्वी सन् की छठी शती का माने तो उनके द्वारा ये गाथाएँ नन्दीसूत्र से अवैतरित किया जाना सिद्ध हो सकता है, अन्यथा नहीं । इति अलम् । (५-१२) अष्टप्राभृत या अट्ठपाहुड - अष्टप्राभृत या अट्ठपाहुड वस्तुतः एक ग्रन्थ न होकर आठ ग्रन्थों का समूह है । इसके अन्तर्गत १. दंसणपाहुड, २. सुत्तपाहुड, ३. चारित्तपाहुड, ४. सीलपाहुड, ५. बोधपाहुड, ६. भावपाहुड, ७. लिंगपाहुड और ८. मोक्खपाहुड – ये छोटे छोटे आठ ग्रन्थ समाहित हैं । पं. मुख्तारजी के अनुसार प्रत्येक पाहुड की गाथासंख्या इस प्रकार है - दंसणपाहुड - ३६, सुत्तपाहुड - २७, चारित्तपाहुड - ४४, शीलपाहुड - ४०, बोधपाहुड - ६२, भावपाहुड - १६३, लिंगपाहुड - २२, और मोक्खपाहुड - १६ गाथाएँ है । कुछ विद्वान इन ग्रन्थों को अलग-अलग करके इन्हें आठ स्वतन्त्र ग्रन्थों में विभाजित करते हैं । कुछ विद्वानों ने मात्र छह पाहुडों को ही उनकी रचना मान कर उन्हें अलग से प्रकाशित भी किया हैं। । (१३) बारसाणुवेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा) - अनुप्रेक्षाएँ १२ मानी गई है, इन्हें भावनाएँ भी कहा जाता है । अनुप्रेक्षाओं या भावनाओं की संख्या को लेकर जैन परम्परा में अनेक मत हैं - कुछ आचार्य मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ्य - ऐसी चार भावनाएँ मानते हैं । किन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में निम्न १२ भावनाएं मानी गई है - १. अनित्य भावना, २. अशरण भावना, ३. एकत्व भावना, ४. अन्यत्व भावना, ५. संसार भावना, ६. लोक भावना, ७. अशुचि भावना, ८. आस्रव भावना, ९. संवर भावना, १०. निर्जरा भावना, ११. धर्म भावना और १२. बोधिदुर्लभ भावना । प्रकारान्तर से श्वे. आगमों में पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं का उल्लेख भी मिलता है। फिर भी जैन परम्परा में भावनाओं को लेकर जो भी ग्रन्थ लिखे गये हैं उनमें उपरोक्त बारह भावनाओं की ही चर्चा हुई है । आचार्य कुन्दकुन्द ने उन्हीं का अनुसरण कर बारह
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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