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जुलाई-२०१६
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भावनाओं की चर्चा की है । इस सम्बन्ध में एक अन्य ग्रन्थ स्वामी कार्तिकेय का भी है । श्वेताम्बर परम्परा में अनेक आचार्यों ने इन भावनाओं को आधार बनाकर संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी आदि में अनेक ग्रन्थ लिखे हैं । . (१४-२१) दस भक्तियाँ – दस भक्तियों में जुगलकिशोरजी मुख्तार के अनुसार ८ भक्तियाँ ही आचार्य कुन्दकुन्दरचित हैं - १. थोरसामिदण्डक (अर्हत्भक्ति). २. सिद्धभक्ति, ३. आचार्यभक्ति, ४. पंचगुरुभक्ति, ५. श्रुतभक्ति, ६. योगीभक्ति, ७. चारित्रभक्ति और ८. सिद्धभक्ति । शेष दो भक्तिया किसके द्वारा रचित हैं, यह विचारणीय है । भक्तियों को स्वतन्त्र ग्रन्थ मानने में एक समस्या है । क्योंकि ये स्तुतिरूपं भक्तियाँ अतिसंक्षिप्त हैं । इस कारण कुछ आचार्य इन दस भक्तियों को भी एक ही ग्रन्थ मानते हैं । इनमें ८ भक्तियों कुन्दकुन्द द्वारा रचित मानी गई हैं ।
. इनके अतिरिक्त २२ रयणसार, २३ मूलाचार आदि अन्य कुछ ग्रन्थ भी कुन्दकुन्द रचित माने जाते हैं । यद्यपि इनका कुन्दकुन्दरचित होना विवादास्पद है । आचार्य कुन्दकुन्दरचित माने गये इन ग्रन्थों में श्वेताम्बर मान्य आगमों से कहाँ-कहाँ और कौनसी गाथाएँ समान हैं, यहाँ बताना भी विवाद को जन्म देगा, अतः इस चर्चा को विराम देकर इस विषय को यहीं समाप्त कर देना उचित होगा । यहाँ मेरा आशय यह है कि हम आचार्यश्री के साहित्यिक अवदान के महत्त्व को समझे यही उचित होगा ।
प्राच्य विद्यापीठ, दुपाडा रोड, शाजापुर (म.प्र.)