________________
जुलाई-२०१६
११३
इस प्रकार मेरी दृष्टि में कुन्दकुन्द के काल की अपर सीमा ई. सन् की छठी शती और निम्नतम सीमा ई. सन् की आठवीं शती मानी जा सकती है । आगे हम उनके साहित्यिक अवदान की चर्चा करेंगे । आचार्य कुन्दकुन्द का साहित्यिक अवदान -
आचार्य कुन्दकुन्द का साहित्यिक अवदान स्तर और ग्रन्थसङ्ख्या दोनों ही अपेक्षा से महान है । यह माना जाता है कि उनके २२ या २३ ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं । यद्यपि उन्हें ८४ पाहुडों (प्राभृतों) के लेखक माना जाता है तथापि आज वे सभी ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं । यदि अष्ट पाहुड को आठ, बारसाणुवेक्खा को बारह और दस भक्ति को दस स्वतन्त्र ग्रन्थ माना जाये तो आज भी यह सङ्ख्या लगभग ३५ के आसपास पहुँच जाती है । उनके उपलब्ध ग्रन्थों की सूची बनाते समय जुगलकिशोरजी मुख्तार ने अष्ट प्राभृतों और दस भक्तियों को स्वतन्त्र ग्रन्थ माना है । उनके अनुसार यह सूचि निम्न है -
१. समयसार, २. नियमसार, ३. पञ्चास्तिकायसार, ४. प्रवचनसार, ५. बारसाणुवेक्खा, ६. दंसणपाहुड, ७. सुत्तपाहुड, ८. चारित्तपाहुड, ९. शीलपाहुड, १०. बोधपाहुड, ११. भावपाहुड, १२. मोक्खपाहुड, १३. लिंगपाहुड, १४. रयणसार, १५. सिद्धभक्ति, १६. श्रुतभक्ति, १७. योगीभक्ति, १८. चरित्रभक्ति, १९. आचार्यभक्ति, २०. निर्वाणभक्ति, २१. पंचगुरुभक्ति, २२. थोरसामिभक्ति । कुछ लोगों ने वट्टकेर के मूलाचार का कर्ता भी उन्हें माना है । इस प्रकार मुख्तारजी उनके ग्रन्थों की संख्या २२ या २३ बताते हैं । कुछ विद्वानों ने अष्टपाहुड, रयणसार और मूलाचार के उनके कर्तृत्व के सम्बन्ध में शङ्का भी उठाई है । यहाँ मैं इस विवाद में पडकर मात्र उनके इन ग्रन्थों का अति-संक्षिप्त परिचय दूंगा ।
(१) समयसार - आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य में श्रेष्ठ आध्यात्मिक ग्रन्थ के रूप में समयसार का स्थान सर्वोपरि है । यह ग्रन्थ मूलतः शौरसेनी प्राकृत में उपलब्ध है । इसकी गाथा-सङ्ख्या विभिन्न संस्करणों में अलग-अलग है। यथा - अमृतचन्द्रजी की टीका में समयसार की गाथा