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________________ ११२ अनुसन्धान-७० प्रो. गुलाबचन्दजी चौधरी आदि ने जाली सिद्ध कर ही दिया है । यदि प्रो. रतनचन्द्रजी उसे आंशिक सत्य भी माने तो भी वह लेख शक संवत् का है और शक सं. ३८८ भी उसे (३८८ + ७८ + ५७ = ५२३ ई. सन्) ईसा की छठी शती के ही सिद्ध करता है । अतः केवल दिगम्बर विद्वानों की बात को ही माने तो भी कुन्दकुन्द का समय ई. सन् की छठी शती पूर्व नहीं ले जाया सकता है । मर्करा अभिलेख के अतिरिक्त अन्य अभिलेख जो शक संवत् ७१९ एवं ७२४ आदि के हैं, वे भी ईसा की ९वीं शती के ही हैं । यदि कुन्दकुन्दान्वय से कुन्दकुन्द का काल सौ वर्ष पूर्व भी मान लिया जाए तो भी कुन्दकुन्द का समय ईसा की छठीं शती से पूर्व नहीं जाता है। प्रो. रतनचन्द्रजी ने सभी प्राचीन स्तर के ग्रन्थों अर्थात्, मूलाचार, भगवतीआराधना, षट्खण्डागम, तत्त्वार्थसूत्र आदि में कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से गाथाएँ लेने का जो सङ्केत किया है, उस सम्बन्ध में मेरा एक ही प्रश्न है यदि इन सभी ग्रन्थकारों ने कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से गाथाएँ और अवधारणाएँ गृहीत की हैं, तो वे उनके नाम का उल्लेख क्यों नहीं करते हैं ?। गाथाएँ ले ले और नाम लेना भूल जाये, यह तो एक गृहस्थ के लिए भी उचित नहीं है, तो साधु और वह भी शुद्ध आचारवान् दिगम्बर मनियों के लिए कैसे क्षम्य होगा ?। यह विचारणीय अवश्य है । आदरणीय भाई रतनचन्द्रजी ने मेरे से असहमत होकर भी उनके ग्रन्थ में और लेखों में मेरे प्रति जो आदरभाव प्रकट किया है वही यह सङ्केत करता है कि पूज्य मुनिवरों ने जब कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से अनेकों गाथाएँ और सैद्धान्तिक अवधारणाएँ गृहीत की, तो वे आदरपूर्वक उनके नाम का स्मरण करना कैसे भूल गये ? । यदि हम पञ्चास्तिकाय के टीकाकार जयसेन और बालचन्द्रजी की बात को मानकर यह कहें कि कुन्दकुन्द ने समयसार महाराज शिवकुमार के लिए लिखा और ये शिवकुमार, शिवमृगेश वर्मा ही थे, जो शक संवत् ४५० में राज्य करते थे, तो भी कुन्दकुन्द का काल ईसा की छठी शती से पूर्व नहीं ले जाया सकता है ।
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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