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________________ जुलाई - २०१६ यमकबन्धमयः जिनस्तव: सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय आ स्तव संस्कृत साहित्यमां उत्कृष्टकक्षानुं कही शकाय तेवुं स्तुति-काव्य छे. अहीं श्रीजिनेश्वर भगवन्तनी १६ श्लोकोमां विविध भङ्गीओथी स्तुति करवामां आवी छे. तेमां पण बीजाथी मांडी पन्दरमा सुधीना श्लोको यमकालङ्कारविभूषित छे. प्रथम श्लोकमां 'जिनस्तुति करवानो अमे उद्यम करीए छीए', एम भूमिका बांधी छे, अने सोळमा श्लोकमां समापन करवामां आव्युं छे. स्तुतिकार व्याकरण - काव्य - साहित्यादि तथा अन्य ज्ञानविधाओना पारगामी हशे तेवुं श्लोकोनी कक्षा जोतां अनुभवाय छे रचयिताए पोताना नामनो कृतिमां क्यांय निर्देश कर्यो नथी, छतां छेल्ला श्लोकमां चक्रबन्धमां तेमना गुरुभगवन्तनुं नाम वगेरे निर्दिष्ट छे एवो अवचूरिनो उल्लेख जोतां स्तवन कर्ता, विक्रमना १४-१५मा सैकामां विद्यमान तपागच्छाधिपति आचार्य श्रीदेवसुन्दरसूरीश्वरजी भगवन्तना परिवारना, कोई विद्वान मुनिराज हशे तेवुं जणाय छे. आ. स्तवना कठिन भावोने समझवा माटे साथे ज अवचूरि पण आपेली छे. अवचूरि पण अत्यन्त विशद अने विद्वत्तापूर्ण छे, तेथी एवी सम्भावना थई शके के स्तवना कर्ताए स्वयं ज तेनी रचना करी होय, कारण के अवचूरिमां पण कर्तानो कोई निर्देश नथी. प्रतिपरिचय : आ प्रति, सदागम ज्ञानभंडार, कोडाय (कच्छ) ना संग्रहनी १४१/१५३५ क्रमाङ्कित प्रति छे. पत्र १ ज छे. प्रति पञ्चपाठी छे. अक्षरो अति सुन्दर - सुवाच्य छे. लेखन शुद्ध छे. पण पत्र चारेय तरफथी करपायेलुं होवाथी घणा अक्षरो /शब्दो तूटी गया छे. तेमांथी जेटला उकल्या/ अनुमानी शकाया तेटला चोरस कौंसमां लखी मूक्या छे, जेटला न उकल्या तेना स्थाने खाली चोरस कौंस मूकेल छे. मूळ स्तवननुं, लेखन चरणानन्द नामक कोई लेखके करेल छे तेवुं पुष्पिकाथी जणाय छे. लेखन संवत् निर्दिष्ट नथी, छतां शैली जोतां १६ मा सैकानी लखावट होय तेवुं अनुमानी शकाय .
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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