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________________ जुलाई - २०१६ धिन धिन अवतारो, धिन इंद्रराज तोरु नाम । लछि - लाहु जि लीधु, कीध अनोपम कांम ॥ २८३॥ संघ - भगति भली परि, करइ संघ- पति इंद्रराज । पट-कूल पहिरावइ, दीजइ भूषण सुभ-काज ॥२८४|| जाचक - जन मिलिया, संख्या सहस दस कीध । पंचामृत भोजन, टंका उपरि दोइ दीध ॥ २८५ ॥ श्रीकल्याणविजय गुरु, विचरइ जगि जयवंत । देसाउर फलीया, हूआ लाभ अनंत ॥२८६॥ इति श्रीकल्याणविजयवाचककृत वइराटप्रतिष्ठानु ढाल ||१३|| हा ॥ राग केदारो ॥ मोटों ओ जगि व्यापारीओ, कल्याणविजय मुनि - सीह । विवहार - सुधि वाणिज करइ, धरम न लोपइ लीह ॥ २८७॥ पंच महाव्रत सुध धरइ, नामई लेखइ जोइ । देस देस वाणिज करइ, लाभ सवे गांठई करी, लेई बालद गूजर भणी, पणि कहुं खोट न होइ ॥ २८८ ॥ -क्रियाण | वणजी पुण्य - आवइ गुरु कल्याण ॥२८९॥ ॥ ढाल ॥ विणजारा हो विणजारा, तई कीधउ सफल अवतार । कल्याणजी मोहनगारा, जगि साचो तुं विणजारा ॥ ९५ विणजारा हो विणजारा ॥ २९०॥ श्रीकल्याणविजय धनवंतो, करइ वाणिज परिघल - चितो । विणज्यां सवि सुकृत-क्रियाणां वाचक- गुण मोती - दाणां ॥ विण० ॥२९१॥
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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